________________ पुण्याढ्य चरित्र 1110 // सान्वय भाषान्तर उत्पद्यमानमप्येतद् द्वयं वार्य शुभाशयैः / उपेक्षितं प्रमादात्तु महादुःखाय जायते // 268 // अन्वयः-शुभाशयः एतद् द्वयं उत्पद्यमानं अपि वार्य, प्रमादार उपेक्षितं तु महादुःखाय जायते // 268 // अर्थः उत्तम विचारवाला मनुष्योए ते आर्त अने रौद्रनामना बन्ने ध्यानोने उत्पन्न थतांज अटकावा, कदाच प्रमादथी जो तेनी उपेक्षा करी, तो ते अति कष्ट आपनारा थाय छे. / / 331 // धर्माद्यदनपेतं तद्धयं तत्त चतुर्विधं / आद्यं तत्र जिनाज्ञायाः पालनं तत्त्वनिश्चयात // 269 // अन्वयः-धर्मात् यत् अनपेतं तत् धर्म्य, तत् तु चतुर्विध, तत्र तत्त्वनिश्चयात् जिनाज्ञायाः पालनं आयं // 26 // अर्थः-धर्मथी जे रहित न होय तेने धHध्यान (जाणq.) ते पण चार प्रकारनुं छे, तेमा तत्वोनो निश्चय करवा पूर्वक जिने. श्वरमभुनी आज्ञानुं जे पालवं, तेने पहेलुं धHध्यान जाणवू. / / 269 // कषायविषयापायत्राणचिन्ता द्वितीयकं / तृतीयं चिन्त्यतं कर्मविपाकश्च शुभाशुभः॥ 270 // 0000000 BEEEEEEEEEEEEEEEEE