________________ पुण्यादय चरित्र / 112 // सान्वय भाषान्तर 112 अर्थ:--अथवा चीजी रीते पण विद्वानोए आ धHध्यान चार प्रकारचें कयुं छे, पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ, अने रूपातीत. 336 देहस्थं ध्वस्तकर्माण चन्द्राभं ज्ञानिनं सुधीः / यत्रात्मानं परैश्वर्यं पश्येत्पिण्डस्थमत्र तत् // 273 // अन्वयः-यत्र सुधीः आत्मानं देहस्थं, ध्वस्तकर्माण, चंद्राभे, ज्ञानिनं परैश्वर्य पश्येत्, तत् अत्र पिंडस्थं // 273 // अर्थ:-ज्या उत्तम बुद्धिवाळो माणस आत्माने शरीरमा रहेलो, नष्ट थयेल कर्मोचालो, चंद्रसरखो (निर्मल ) ज्ञानयुक्त, - अने परम समृद्धिवाळो जुए छे, तेने अहीं पिंडस्य ध्यान (कहे छे ) // 273 // मन्त्राक्षरणि शारीरपद्मपत्रेषु चिन्तयेत् / गुर्वादेशेन यद्योगी पदस्थं तदिहोच्यते // 274 // अन्वया-योगी गुर्वादेशेन शारीरपद्यपत्रेषु यत् मंत्र अक्षराणि चिंतयेत् , तत् इह पदस्थं उच्यते. / / 274 // अर्थ:-योगी गुरुनी आज्ञाथी शरीरसंबंधि कमलपत्रोपर जे मंत्रसंबंधि अक्षरोने चिंतवे, ते अहीं पदस्थ ध्यान कहेवाय छे. // सप्रातिहार्य समवमृतिस्थं ज्ञानिनं जिनम् / तबिम्ब वा स्मरेद्योगी यत्तद्रुपस्थमिष्यते // 275 //