________________ 00000000000000000000 पुण्याढय सान्वय भाषान्तर चरित्र अन्वयः-समातिहार्य, समवमृतिस्थ, ज्ञानिनं जिनं, वा तबिंब योगी यत् स्मरेत् , तन् रूपस्थं इष्यते. // 275 // अर्थ:-प्रतिहारसहित, समवसरणमां बेठेला अने ज्ञानी एवा जिनेश्वरने अथवा तेमनी प्रतिमाने योगी जे चिंतवे, ते रूपस्थ ध्यान कहेवाय छे. // 275 // यदमूर्त महानन्दमयं सिद्धं निरञ्जनम् / ध्यायेद्योगी परात्मानं रूपातीतं दिशन्ति तत् // 276 // . अन्वयः-अमूर्त, महानंदमयं, सिद्ध, निरंजनं परात्मानं योगी यत् ध्यायेत् , तत् रूपातीतं दिशंति. // 276 / / अर्थ:-निराकार, महा आनंदमय, सिद्ध, अने निरंजन एवा परमात्मानुं योगी जे ध्यान धरे, तेने रूपातीत ध्यान कहे छे.॥ एवं संक्षेपतः प्रोक्तं धर्मध्यानं धराधिपः / इह लोकेऽपि माहात्म्यमस्यानन्तं सतां भवेत् // 277 // . अन्वयः-(हे) धराधिप! एवं संक्षेपतः धर्मध्यानं प्रोक्तं, सतां इह लोके अपि अस्य माहात्म्य अनंतं भवेत् // 277 // अर्थ:-हे राजन् ! एवी रीते संक्षेपथी धर्मध्याननुं स्वरूप कबू, उत्तम माणसोने आ लोकमां पण (लब्धिआदिकरूपे ) तेनोन baccCOOOOOOcccccccc Jun Sun Aaradhak Trust OPP.AC.Gunratnasuri M.S..