________________ 132 // पुण्यात्य 5 इत्यवस्थाप्य नृपतिर्द्वपस्यार्तिचलं मनः। प्रापञ्चयस्कृती पंचपरमेष्ठिनमस्कृतीः॥ 323 // सान्वय चरित्रं ..अन्वयः इति द्विपस्य आर्तिचलं मनः अवस्थाप्य कृती नृपतिः पंचपरमेष्ठिनमस्कृतीः प्रापंचयत् // 323 // भाषान्तर / 132 / अर्थः एबी रीते ते हाथीना व्याधिथी व्याकुल थयेला मनने स्थिर करावी, ते कृतज्ञ राजा पंचपरमेष्टिना नमस्कार बोलवा लाग्यो.. दृशौ बाष्पस्पृशौ बिभ्रद्वपुः सपुलकं पुनः। हृष्यन्करी नमस्कारान्भावनाममृणोऽशृणोत् // 324 // . अन्वयः-बाष्पस्पृशौ दशौ, पुनः वपुः सपुलकं विभ्रद् भावनाममृणः करी हष्यन् नमस्कारान् अभृणोत्. // 324 // अर्थ:--आंसुओवाळी आंखोने, तथा रोमांचित थयेलो शरीरने धारण करतो थको, शुभभावना भावतो ते हाथी खुशी थइने नवकारमंत्री समिळवा लाग्यो, // 324 // .. .. सुखेन प्राप्तया दीर्घनिद्रया स्वप्नभागिव / इभप्रभुरसौ धर्मदिव्यः सौधर्मदिव्यगात् // 325 // अन्वयः--धर्मदिव्यः असौ इभ प्रभुः स्वमभाक् इव सुखेन प्राप्तया दीर्घनिद्रया सौधर्म दिवि अगात. // 325 // COLORGESTIONS OSHO