________________ De999999999999999999 सान्वय पुण्याय चरित्र 115/ भाषान्तर 115 Jio जे ज्ञान यवु, / 279 // तेमज पदना अर्थने देखतांज नही सांभळेला एवा पण पदनुं जे ज्ञान थ, तेने पहेलु " पृथक्त्ववितकै सविचार" नामर्नु शुक्लध्यान कहे छे. // 280 // युग्मं // ददच्छब्दार्थयोरैक्यपरिज्ञानं वितर्कतः। अपृथक्त्वविचारेण मनानैश्चल्यकारणं // 281 // पूर्वश्रुतानुसारोत्थं केवलज्ञानहेतुकं / तद् द्वैतीयीकमेकत्ववितर्कमविचारकं // 282 // युग्मं // अन्वयः-वितर्कतः शब्दअर्थयोः ऐक्यपरिज्ञानं ददत, अपृथत्वविचारेण मनोनैश्चल्य कारणं / / 281 / / पूर्वश्रुतानुसारोत्थं FD केवलज्ञानहेतुकं, तत् द्वैतीयीक एकत्व वितर्क अविचारकं // 282 // युग्मं // अर्थः-वितर्कथी शब्द तथा अर्थ बन्ने एकज छे, एवं ज्ञान आपनारं, एटले ते बन्नेना अभिन्नपणाना विचारथी मनने निश्चल करवाने कारणभूत // 281 // पूर्वोना ज्ञानने अनुसारे ( अर्थात् पूर्वधारीने ) उत्पन्न थयेलं, अने केवलज्ञानना हेतुरूप, एवं जे शुक्लध्यान, तेने बीजं " एक्त्ववितर्क अविचार" नामर्नु कहलुं छे. // 282 // युग्मं / / P. PAC Guntatnasur MS Jun Gun Aaradtak Trust