________________ AYANAKAPKNAMAymYANPAPARSAAPPSAns पुण्याढय सान्वय भाषान्तर / 163 OKSARALEKAR अर्थः–माटे हे पिताजी! आपे वारवार भने ओ मार्ट कहे नही. कमकै संसारथी तपैलो एवो हुआ रात्रिभोजनन कार्य कसने क्यां शांति मेळवी शकुं? // 396 // अथैनमेनसां धाता तत्पिता कुपितोऽवदत् / लडसे यदि मद्वाचं मुश्च लोचनवर्त्म तत् // 397 // अन्वयः-अथ एनसां धाता तत्पिता कुपितः एनं अवदव, यदि महाचं लंघसे, तत् लोचनवर्त्म मुंच? // 397 // अर्थः--पछी पापिष्ट एवा तेना पिताए क्रोध पामीने तेने कह्यु के, ज्यारे मारा वचननो तुं अनादर करे छे, त्यारे मारी आंखोथी तुं वेगळो जा' // 397 // ततोऽथ विषभृवृन्दकन्दरादिव मन्दिरात / स निःससार संसारकारणं ममतां त्यजन // 398 // अन्वयः-अथ संसार कारणं ममता त्यजन् सः विषभृत्वृंदकन्दराव इव ततः मंदिरात निःससार. // 398 // अर्थः-पछी संसारना कारणरूप ममताने तजतो एवो ते केशव सोना समूहथी भरेली गुफामांथी जेम, तेम ते घरमाथी DotcoDO00 00000000000000000000 स P.P.AC.Gunratnasuri M.S.