________________ OME09009 सन्वय चरित्रे भाषान्तर पुण्याढय अन्वयः-अंगत्यागे अपि यत्र आत्मा शैलेशीकरणस्थितः, शैल इव ईशः आत्मीयं अंगरूपं न मुंचति // 285 // मुक्तश्वासो- च्छवासादिकक्रियं, च यत् अनिवार्त स्यात्, तत् तुर्य व्युपरतक्रियं // 286 / / युग्मं / / 117/MEAN अर्थ: मानो अर्थः-शरीरनो त्याग कर्या छता पण ज्यां आत्मा शैलेशीकरणमा रहेलो छे, एटले के पर्वतनी पेठे अचल (समर्थ) थइ पोताना अंगस्वरूपने छोडतो नथी, // 285 / / तथा जेमा श्वासोश्वासआदिकनी क्रिया छोडाइ गइ छे, अने जे पाछु चाल्युं जतुं नथी, तेने चोथु " व्युपरतक्रिय" नामनुं शुक्लध्यान कहे छे. // .286 // युग्मं // आत्मप्रकाशकैवल्यरूपं कर्मक्षयोदितम् / केवलज्ञानकाले स्याध्यानं शुक्लं तु योगिनः // 287 // अन्वयः-आत्मप्रकाशकैवल्यरूपं, कर्मक्षयउदित शुक्लं ध्यानं तु योगिनः केवलज्ञानकाले स्यात् // 287 // .. अर्थः केवल आत्मज्योतिमय, अने कर्मोना क्षयथी उत्पन्न थयेलुं शुक्ल ध्यान तो योगीने केवलज्ञान समये थाय छे. // 28 एतध्यानं स्वतो जातं सद्गुरोर्वोपदेशतः / वज्रऋषभनाराचदेहस्यैव स्थिरं भवेत् // 288 // 00000000 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust