________________ peteeeeeeeeeeeeeeERIEND भाषान्तर पुण्याढ्य चरित्रं 5 (205/ एम विचारता थका (त्या) तेणे वह्निदेवने जोयो. // 495 // मा कार्षीविस्मयं मत्वावधिज्ञानात्तव व्यथाम् / आगां कर्तु वरं सत्यमित्युक्त्वागादिवं सुरः // 496 // अन्वयः-विस्मयं मा कार्षी, अवधिज्ञानात् तव व्यथा मत्वा वरं सत्यं कर्तुं आगा, इति उक्त्वा सुरः दिवं अगाव. // 49 // CHOTI अर्थः-(तुं) आश्चर्य नही पाम ? अवधिज्ञानथी तारं कष्ट जोइने (आपेला) वरदानने सत्य करवा माटे हु आव्यो छु, एम कही (ते) देव देवलोकमा गयो. // 496 // हृष्टेन केशवेनाथ पाणिस्पृष्टेन पाथसा / हंसः सिक्तश्च रोगौघमुक्तश्च द्रुतमुत्थितः // 497 // - अन्वयः अथ हृष्टेन केशवेन पाणिस्पृष्टेन पाथसा हंसः सिक्तः, च रोग ओष मुक्तः, च द्रुतं उत्थितः // 497 // अर्थः-पछी खुशी थयेला ते केशवे (पोताना) हाथे स्पर्श करेला जलवडे ते इंसने न्हवराव्यों, (तेथी ते) रोगना समूहथी। मुक्त थयो, तथा तुरतज बेठो थयो. // 497 // Jun cu aradnak PP.AC.GunratnasuriM.S.