________________ preeeeeeeeeeeeeeeeeees 0 पुण्याढ्य चरित्र 204) सान्वय भाषान्तर 204 // ..अन्वयः-कृथित अंग अति. दुर्गध त्रस्त बंधु कदंबकं, रोदन उच्छ्न नेत्रया एकया अंबया एव युक्तं, // 493 // नरकातीनां सासेद्धारैः इव अतिमिः अदितं, आसन्नमृत्यु, भूक्षिप्तं इस दुःखी सः ददर्श // 494 // युग्मं / अर्थः-सडी गयेला शरीरमाथी (निकळता) घणा दुर्गधथी (कंटाळीने) दूर बेठो छे कुटुंचनो समूह जेनाथी, तथा रुदन कर. बाथी सूजीगयेल के नेत्रो जेणीना, एवी फक्त एक माताथीज युक्त थयेला, (अर्थात जेनी नजदीक फक्त एक माताज बेठेली छे एवा) // 493 / / तथा नरकनी पीडाओनो जाणे सार खेंची कहाड्यो होय नही? एवी वेदनाओथी पीडित थयेला, नजदीक छे मृत्यु जेने एवा, तथा भोंये लीधेला एवा ते हंसने ते दुःखी केशवे जोयो. / / 454 // युग्मं // तद्व्यथाव्यथितोऽपीहग्दूरमार्गद्रुतागतो / कुतः शक्तिरिति भ्यायन्सोऽपश्यद्वह्निदेवतम् // 195 // : अन्वयातचथाव्यथितः अपि सः ईग दूर मार्ग द्रुत आगतौ कुतः शक्तिः इति ध्यायन वद्विदैवतं अपश्यतः // 495 / / अर्थ:-ते हंसनी वेदनाथी पीडीत थयेला एषा पण ते केशवे, आटले बधे दूर मार्गे एकदम आववामा (मने) क्याथी शक्ति आवी? DSSSSSSSC 0999000