________________ OOODegende0 पुण्यातच चरित्र समन्वय भाषान्तर |21|| इत्येष समरेऽजैषीदन्तलक्षीकृतान्द्विपः। लक्षीकृतं तदस्त्रैः स्वं गतिवेगादलक्षयन् // 48 // अन्वयः इति एषः तदस्तैः लक्षीकृतं-स्त्रं गतिवेगात् अलक्षयन् समरे दंतलक्षीकृतान् द्विषः अजैषीत् // 48 // अर्थ:--एवी रीते आ हाथी ते शत्रुओना शस्त्रोए चींधेला एवा. पोताने गतिवेगथी अदृश्य करतो थको रणसंग्राममा (पोताना) दांतोनी चींधणीमा आवेला शत्रुओने जीतवा लाग्यो. // 48 // . .. दिशामन्तेषु मिथ्यात्वख्यातान्प्रेक्ष्येव दिग्गजान् / जितकाशी स कुम्भीन्द्रो ववलेऽनुचलबलः // 49 // अन्वयः-मिथ्यात्वख्यातान् दिग्गजान् प्रेक्ष्य जितकाशी इव अनुचलबलः स कुंभींद्र: दिशा अंतेषु ववले. // 45 // अर्थ: जहीरीते प्रख्याति पामेला एवा दिगृहस्तीओने जोइने जाणे तेओने जीतवानी इच्छाथी होय नही ! तेम जेनी पाछळ पाछळ सैन्य चाली सयुं छे, एवो ते हस्तिराज दिशाओना छेडाओतरफ चालवा लाग्यो. // 49 // शक्तिसाधितदुःसाधे सिन्धुरे जयबन्धुरे / तस्मिन् सविस्मयनेम रेमे भूमीशमानसम् // 50 // काशी इव अन ओने जीतवाना॥ 42 // // 50 //