________________ De3000000031210X20008 पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भाषान्तर // 27 // चार लींटीनो नीचे मुजब श्लोक लखवा लाग्यो. // 64 // युग्मं // ..... अविज्ञातत्रयीतत्त्वो मिथ्यासत्त्वोल्लसदभुजः / हा मूढ शत्रुपोषेण मित्रप्लोषेण हृष्यसि // 65 // -- अन्वयः-हा मूढ ! अविज्ञातत्रयीतयः मिथ्यासचोल्लसद्भुजः (स्वं.) शत्रुपोषेण मित्रप्लोषेण हृष्यसि. // 15 // अर्थः-अरे मूर्ख! त्रण तत्वोने जाण्याविना निरर्थक भुजावलना गर्ववाळो एवो तुं शत्रुओने खुशी करीने, अने मित्रोनो विनाश करीने, आनंद पामे छे !! // 65 // .................. ................. श्लोकमालोकयन्नेनमनेनसमसौ नृपः। अजानन्नर्थमर्थज्ञानपृच्छन्मित्रमन्त्रिणः // 66 // . अन्वयः-एनं अनेनसं श्लोकं आलोकयन असौ नृपः अर्थ अजानन् अर्थज्ञान मित्रमंत्रिणः अपृच्छत् / / 66 / / अर्थः -आ निर्दोष श्लोकने जोता एवा आ राजाए (तेना) अर्थने नही जाणवाथी तेनो भावार्थ जाणनारा (पोताना) मित्र| सरखा मंत्रीओने ( तेनो अर्थ ) पूछयो. // 66 // .. .. 200909108