________________ 00000000000000000000 सान्वय पुण्याच चरित्रं 34 भाषान्तर Lal |34| अर्थः-जाणे देहधारी शांतरसज होय नही ? एवा ते मुनिराजने आवता जोइने ( पोताना) बन्ने दांतो जमीनपर स्थापन करी हर्षनाद करताथका ते हाथीए ( तेमने ) नमस्कार कर्यो. // 81 // देवांशः कोऽप्यसौ कुम्भी मोहशुम्भी ननाम यम्।न किं मुनीन्द्रं निस्तन्द्रा नमामो वयमप्यमुम् // 8 // - अन्वयः-मोहगुंमी असौ कोऽपि देवांशः कुंभी ये ननाम, अघु मुनींद्रं वयं अपि निस्तंद्राः किं न नमामः // 82 // .... अर्थः-मोहरहित एवो आ कोइ देवांशी हाथी जेमने नम्यो, एवा आ मुनीश्वरने अमो पण प्रमाद तजीने केम न नमीये? // 2 // B) इति ध्यायन्समुत्थाय भद्रपीठाद्विभुर्भुवः। नमश्चकार सपरीवारः संसारतारणम् // 83 // .. ___ अन्वयः-इति ध्यायन् भुवः विभुः भद्रपीठात् समुत्था। सपरिवारः संसारतारणं नमश्रकार. // 8 // अर्थः-एम विचारता एवा ते सजाए सिंहासनपरथी उठीने परिवार सहित संसारथी तारनारा (एवा ते मुनिराजने) नमस्कार कर्यो..३। मूर्ति सिंहासानेऽध्यास्य निविश्याग्रेऽतिभक्तिभाक. तं श्लोकं दर्शयन्भित्त्यामर्थं पप्रच्छ पार्थिवः // 4 // 00000000000000000000