________________ RSSC000000000 - पुण्याय 2 चरित्र अर्थः--सिद्धपणामां केवलज्ञानने जिनेश्वरोए कारणभूत कहेलुं छे. अने ते केवलज्ञान पण कर्मोना क्षयथीज थाय छे, अने ते सान्वय कर्मोनो क्षय ध्यानथी थाय छे. // 256 // / भाषान्तर अन्तर्मुहूर्तमेकाग्रचिन्ता ध्यानमिदं पुनः / आर्त रौद्रं च धयं च शुक्लं चेति चतुर्विधम् // 257 // 105 / / अन्वयः-अंतर्मुहूर्त एकग्रचिंता ध्यान, इदं पुनः आत, च रौद्रं, च धयं, च शुक्लं इति चतुर्विधं // 257 / / अर्थः-अंतर्मुहूर्तमुधी एकाग्रपणे जे चिंतन करवं, ते ध्यान कहेवाय, वळी ते आर्त, रौद्र, धर्म्य अने शुक्ल एम चार प्रकारनु छ.।२५७ ऋतमित्युच्यते दुःखं तस्मादेतद्भवेदिति / आत विदुरिदं ध्यानं तदप्युक्तं चतुर्विधम् // 258 // 'अन्वया-ऋतं इति दुःख उच्यते, तस्मात् एतद् भवेत्, इति इदं आत्तं ध्यानं विदुः, तत् अपि चतुर्विधं उक्तं. / / 258 // अर्थ:-ऋत एटले दुःख कहेवाय छे, अने तेथी आ थाय छे, माटे तेने आध्यान कहेलुं छे, वळी ते आध्यान पण चारहराला SEER) : मकारखं कई छ. दुख कहेवाय छे, अने तेथी अभाव, इति इदं आर्त ध्यानं विदुः, SeeISCIENCIESICICIEEEeeeee Jun Gun Aaradhak Trust SRPR.AC.Gunratnasun M.S, Pawan