________________ पुण्यादय 0 चरित्र सान्वय भाषान्तर / 106 / इन्द्रियाप्रियवस्तूनां प्राप्तौ या दुःखतो भवेत् / अतीवविरहातीवोच्छेदचिन्तेदमादिमम् // 259 // अन्वयः-इंद्रिय अप्रियवस्तूनां प्राप्तौ दुःखतः या अतीव विरह अतीव उच्छेद चिंता भवेत् इदं आदिम. // 259 / / अर्थः-इंद्रियोने न गमे एवा पदार्थों मळते छते, दु:खथी एम चितवद् के, हवे आ अनिष्ठ पदार्थों माराथी तुरत दूर थाय, अने ते पदार्थोनो अत्यंत विनाश थाय तो ठीक, एबी जे चिंता तेने पहेलं " आर्तध्यान " जाणवू. // 259 // द्वितीयं रुजि सत्यां तत्प्रतीकारैकचेतसः। तद्विप्रयोगतदसंप्रयोगातीवचिन्तनम् // 260 // ___अन्वयः-रुजि सत्यां तत्मतीकारकैचेतसः तद्विप्रयोग तत् असंप्रयोग अतीवचिंतनं द्वितीयं. // 26 // अर्थः-रोग थये छते तेने मटाडवाना उपायोमाज एकाग्रमनवाळा मनुष्यनुं ते रोगना अत्यंत वियोगमाटे तथा असंभयोग एटले फरीने पाछो न थवा माटे जे अत्यंत चिंतवन, तेने बीजुं आर्तध्यान जाणवू. // 260 // तृतीयं त्विष्टविषयप्राप्तौ संहृष्टचेतसः / चिन्ता तदवियोगे च तत्संगे च महास्पृहा // 261 // DEOS DESISEISEISISEISSENG