________________ DISISISISTERSISTERIETIEveres साम्बया भाषान्तर 158 158 पुण्यादय (0अर्थः-तेज वखते दैवयोगे वायुथी उडेलु तणखलुं तेना हाथमा आव्यु, अने आ शस्त्र छे, एम मानी तेणे ते शत्रुपर फेंक्यु.॥१३९॥ चरित्र / अथाशु स्फूर्जदूर्जस्विस्फूर्जथुस्फोटिताम्बरम् / लोलकीलाकुलौद्धत्यधगदिग्मण्डलोदरम् // 140 // कम्पमानाचलचयं भयभुग्नजगत्त्रयम् / तृणमप्यभवद्वजं व्योन्नि पुण्याढ्यपुण्यतः // 141 // युग्मं // 'अन्वय:-अथ आशु स्फूर्जत उर्जस्विस्फूर्जथुस्फोटित अंबर, लोलकीलाकुल औद्धत्य धगदिग्मंडलउदरं॥ 140 // कंपमानअचलचयं, भय मुग्न जगत्त्रयं तृणं अपि पुण्याढयपुण्यतः व्योनि वजं अभवत् // 141 / / युग्मं / / 1 अर्थ:-हवे तुरतज विकस्वर तेजवाळु, तथा अवाजवी आकाशने पण फोडी नाखनारुं चपल ज्वालाओना समूहना फेलावाथी दिग्मंडलना मध्यभागने पण धगधगायमान करतुं, // 140 // पर्वतोना समूहने कंपावातुं, अने मयथी त्रणे जगत्ने धुजावतुं एवं ते तणखलं पण पुण्याढय राजाना पुण्यथी आकाशमा वज्ररूप थयु. 141 // युग्मं // . यो न स्यति पुण्याढयं तत्र बज्र पतिष्यति / इत्यभूच्च नभोवाणी भूपभाग्याधिदैवतात् // 142 // ceBlat083338el2013nele