________________ पुण्याढ्य चरित्र 172 सान्वय भाषान्तर ( 172 "आराद्धाच विराद्धाच्च धर्मादेव शुभाशुभे / लभते जन्तुरन्यत्तु मुख्यं किंचिन्न कारणम् // 174 // 'अन्वयः-जंतुः आराद्धात् च विराद्धात् च धर्मात् एव शुभ अशुभ लभते, अन्यत् तु किंचित् मुख्य कारण न. // 174 // अर्थ:-पाणी आराधेला तथा विराधेला धर्मथीज सारंनरसु मेळवे छे, (शिवाय ) बीजं कई पण मुख्य कारण नथी. // 174 // इति निश्चित्य सत्कृत्यमावितत्य शुभात्मना / धर्मः संसेव्य एवैषोऽतुल्यकल्याणजन्मभूः // 175 // . 'अन्वया-इति निश्चित्य शुभआत्मना सत्कृत्यं आवितत्य अतुल्य कल्याण जन्म भूः एष: धर्मः एव संसेव्यः // 175 // अर्थ:-एवो निश्चिय करीने उत्तम माणसे सत्कार्य करीने अनुपम कल्यागनी जन्मभूमिसरखो आ धर्मज सेववो जोइये. // 17 // 'इत्थं तस्य मुनीशस्य तैः पपे वचनामृतम् / अतृप्तैरिव मूर्धानं धुनानैर्धर्मिभिभिः // 176 // अन्वयः-इत्थं अतृप्तः इव मूर्धानं धुनानैः तैः धर्मिमिः नृभिः तस्य मुनीशस्य वचनअमृतं पपे. / / 176 // *अर्थ:-पवी रीते जाणे हजु तृप्त न थया होय नहीं ? एम मस्तक धुणावता एवा ते धर्मी माणसोए ते मुनिराजना वच