________________ पुण्याय चरित्र 194 ( सान्वय भाषान्तर |14| माधुर्यधुर्यदुग्धोर्मिरसप्रीतसुधाशनम् / ऐन्द्रजालिकनिर्देशात्पातुं सा तं समुद्यता // 229 // युग्मम् // अन्वयः-उच्छलत् शोणरत्न अंशुमाला मग्न अर्क मंडलं, समुद्यत् विंदुसंदोह उपशांत श्रांतरखेचरं // 228 // माधुर्य धुर्य दुग्धउमि रस पीत सुधा अशनं तं ऐंद्रजालिकनिर्देशात् सा पातुं समुद्यता. // 229 ।युग्म।। अर्थः--उछळता लाल रत्नोना किरणोनी श्रेणिमा बूडेलुं छे सूर्यमंडल जेमा, तथा उंचे उडता जलकणोना समूहथी शांत थयेल छ थाकेला खेचरो जेनाथी, // 228 // अने अतिमीठा दूधसरखा मोजाओना रसथी खुशी थयेल छे देवोजेनाथी एवा ते समुद्रने इन्द्रजालिकना कहेबाथी ते पीवा लागी. // 229 // युग्मं / ऐन्द्रजालिकविज्ञानप्रसादेन रसादसौ। एकेनैव तयापायि श्वासेन पयसां पतिः // 230 // . अन्वयः-ऐंद्रजालिक विज्ञान प्रसादेन तया एकेन एव श्वासेन असौ पयसां पतिः रसात् अपायि. // 230 // अर्थ-ते इंद्रजालिकनी कलाना प्रसादथी तेणीए एकज धुंटडामा आ महासागर रसथी (आनंदथी) पीधो. // 230 // ISISISISTED OESGRECEIGERGE096060 Jun Gun Aaradhak Trust