________________ DOOO0000000000000 पुण्याच चरित्रं सान्वय भाषान्तर / 165/ अटन्नऽव्यां कुलापि निशीथसमयेऽथ सघनयात्राजनं यक्षायतनं किंचिदैक्षत // 401 // .. अन्वयः-अथ अटव्यां अदन् स: निशीथसमये कुत्र अपि घनयात्राजनं किंचित् यक्ष आयतनं ऐक्षत. // 401 // -- ::: अर्थः-पछी अरण्यमा भमतां थकां तेणे मध्यरात्रिए क्यांक ज्यां यात्रा माटे घणा लोको एकठा थया छे, ए, कोइक यक्षन मंदिर जोयु. // 401 // . . तत्र यात्राजना यक्षगृहे सजितभोजनाः / हृष्यन्तः समभाषन्त तमागच्छन्तमुत्सुकाः॥ 402 // * अन्वयः-तत्र यक्षगृहे सज्जित भोजनाः यात्राजनाः तं आमच्छंत (वीक्ष्य) हृष्यंत उत्सुकाः समभाषत / 402 // ...अर्थः-ते यक्षना मंदिरमा तैयार करेल छे भोजन जेओए एवा ते यात्रालुओ ते केशवने आवतो (जोइने) हर्षित तथा उत्सुक थया थका कहेवा लाग्या के, / / 402 // .. एहि भोज्यमादेहि देहि पुण्यानि पान्थ नः / पश्यामः काममतिथिं वयमारब्धपारणाः // 403 // Gocierain 000000000000 PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust