________________ 0000 00000 पुण्याढय चरित्र // 11 // सम्बय भाषान्तर 1119 OGGIESIGeo अन्वयः-तत्र अभिज्ञजनमंडनं इदं अभिज्ञानं शृणु ? ते अंगात् संकोचषणं सर्वथा उत्तरिष्यति. // 291 // अर्थः-वळी ते संबंधमां डाह्या माणसोने शोभावनारु (तने) जे एंधाण मळशे, ते सांभळ 1 तारा शरीरपरथी (हाथ पगोना) संकोचनुं दूषण बिलकुल दूर थशे. // 291 // तर्हि देहि गृहस्थानामेव धर्म मम प्रभो / इत्युक्तो भूभुजा सूरिः श्रद्धापूरितचेतसा // 292 // तस्मिंस्तदैव सम्यक्त्वं द्वादशवतभूषितम् / विधिनारोपयामास प्रकाशितमहोत्सवे // 293 // युग्मम् // अन्वयः-तर्हि (हे) प्रभो ! मम गृहस्थानां एव धर्म देहि ? इति श्रद्धापुरितचेतसा भूभुजा उक्तः परिः // 292 // तदा एव प्रकाशितमहोत्सवे तस्मिन् द्वादशवतभूषितं सम्यक्त्वं विधिना आरोपयामास. // 293 / / युग्मं / / अर्थ:--त्यारे हे स्वामी ! मने गृहस्थोनोज धर्म आपो? एवी रीते श्रद्धायुक्त मनवाळा (ते) राजाए कहे वाथी (ते) मुनिराजे // 292 // तेज वखते करेल छे महोत्सव जेणे एवा ते राजाने बार ब्रतोथी अलंकृत थयेलुं सम्यक्त्व विधिपूर्वक समर्पण कर्य, 293 REGIO666600 Jun Gun Aaradhak Trust RP.AC.GunratnasunMS.