________________ peeeeeeeeeeeeISOD पुण्यातच चरित्र 1222 // सान्धय भाषान्तर / 232 // नित्योद्यतस्य निर्जेतुमधर्म सङ्घभूपतेः / गुप्यद्गुरुमिवापश्यत्स तुङ्गं रङ्गमण्डम् // 536 // अन्वयः-अधर्म निर्जेतुं नित्योद्यतस्य संघ भूपते: गुण्यद्गुरुं इव तुंग रंगमंडपं सः अपश्यत् // 536 // अर्थः-(पछी) पापने जीतवा माटे हमेशा उद्यमवंत थयेला एवा संघरूपी राजाना गंभीर गुरुसरखा उंचा रंगमंडपने तेणे जोयो. गुर्वीरुर्वीश्वरोऽद्राक्षीदम्यास्त्रिकचतुष्किकाः / धर्मस्य श्रद्धया साधं विवाहे वेदिका इव // 537 // अन्वय:-श्रद्धया सार्घ धर्मस्य विवाहे वेदिकाः इव, उर्वीश्वरः गुवीः रम्याः त्रिकचतुष्किकाः अद्राक्षीत् // 37 // .. अर्थः-(पछी) श्रद्धानी साथे धर्मनां लग्न करवा माटेनी जाणे वेदीओ होय नही ! एवी (ते) राजाए (त्या) म्होटी अने मनोहर त्रिको तथा चोकठो दीठी. // 537 // . असंख्यसुखसंप्राप्तिनित्यानन्दात्मसेवितः / साक्षान्मोक्ष इव प्रीत्यै राज्ञाऽभूद्गूढमण्डप // 538 // अन्वयः-असंख्य सुख संपाप्ति नित्यानंद आत्म सेवितः गूढमंडपः साक्षात् मोक्ष इव राज्ञः प्रीत्यै अभूत. // 538 / / 0000000000000000000