________________ OOOOOOOOOOOOOOOOOO पुण्यादय चरित्र सान्वय भाषान्तर 119 // *अन्वयः-(है) प्रभो जसपराभूता, व्रत ग्रह चिर स्पृहा, अपुत्रः स्वं राज्यं कुत्र न्यस्यामि ? इति दुःखितः अस्मि.॥४६८॥ अर्थ:-हे प्रभु! जरावस्थाए पहोचेलो, तथा घणा काळथी चारित्र लेवानी इच्छाचाळो (हुं) पुत्ररहित होवाथी मारूं (आ) राज्य कोने सौंपु १ए विचारथी हुं चिंतातुर थयेलो छु. // 438 // . . ......... मत्पुण्येनेव मूतेन पुंसा दिव्येन केनचित् / स्वप्ने ममेति शान्तेन निशान्तेऽद्य न्यवेद्यत // 469 // अन्वयः अद्य निशांते स्वप्ने मूर्तेन मत्पुण्येन इच केनचित् शांतेन दिव्येन पुंसा मम इति न्यवेयत. // 469 // अर्थः-आजे परोढीये स्वप्नमा जाणे देहधारी मारा पुण्येज होय नही ? तेम कोडक शांत प्रकृतिवाळा दिव्य पुरुषे मने स्वप्नमा एम जणान्युं के, // 469 // प्रातर्देशान्तरादेति यस्ते गुरुपुरः स्थिते / योग्ये तस्मिन्भुवं न्यस्य भव पूर्णमनोरथः // 170 // अन्वया-यामातदेशांतरात् एति, ते गुरुपुरः स्थिते तस्मिन् योग्ये भुवं न्यस्य पूर्णमनोरथा भव // 470 //