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संस्कृत-साहित्य का इतिहास
जिसके विकास का पता सम्पूर्ण साहित्य दे रहा है और जिसकी ध्वन्यास्मक विशेषताएँ उत्तर पश्चिमी भारत के शिलालेखों में बहुत सीमा तक सुरक्षित है । मूलरूप में यह ब्राह्मण-धर्म की भाषा थी, जो उसी उत्तरपश्चिमी भाग से प्रचलित हुआ था। श्राह्मण-धर्म के प्रसार के साथ इसका भी प्रसार हुश्रा और जब भारत के अन्य दो बड़े धर्म-जैन और बौद्ध धर्म--फैलने लगे, तब कुछ समय के लिए इसका प्रसार रुक गया । जा भारत में उक दोनों धर्मों का हास हुअा, तब इसने निर्विन उहति करना प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे यह सारे भारतवर्ष में फैल गई । प्रारम्भ में एक जिले की, फिर एक वर्ण तथा धर्म की, अन्त में यह सारे भारतवर्ष में एक धर्म, राजनीति और संस्कृति की भाषा बन गई। समय पाकर खो यह एक विशाल राष्ट्रीय भाषा बन गई और केवल तभी यह पद च्युत हुई, जब मुसलमानों ने हिन्दू राष्ट्रीयता को ताह किया।
निम्नलिखित बातों से यह सिद्ध होगा कि संस्कृत कभी भारत की बोलचाल की भाषा यो:--
(5) बहुत काल तक मध्य संस्कृत तथा श्रेण्य संस्कृत, जो वैदिक भाषा की ही कुलजा है, शिक्षित श्रेणी को बोलचाल की भाषा बनी रही
और इन्होंने सर्वसाधारण की बोलियों अर्थात् पाली एवं नाटकों की प्राकतों पर भी प्रभाव डाला।
१. यह बात अधोलिखित उदाहरण से विस्पष्ट हो जायगी। नाटकीय प्राकृत में हमें ऋद्धि' और 'सुदरिसन' शब्द मिलते हैं । पाली में उन्हीं से मिलते जुलते 'इद्धि (सं० ऋद्धि,) और 'सुदस्सन' (स० सुदर्शन) शब्द मिलते हैं । यह सिद्ध नहीं किया जा सकता कि 'ऋद्धि' और 'सुदरिसन' शब्द पाली के 'इडि' और 'सुदरसन' से विकसित हुए हैं,प्रत्युत यही मनाना होगा कि पूर्वोक्त दोनों शब्द संस्कृत भाषा से ही निकले हैं।