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अध्याय ७
अश्वत्रोष (२६) अश्वघोष का परिचय अश्वघोष भी संस्कृत के बडे बडे कवियों में से एक है। यह महाकाव्य, नाटक और गीति-कानों का निर्माता है। यह बौद्ध भिक्षु था। जनश्रुति के अनुसार यह कनिष्क का समागमशिक था । सिब्बत, चीन
और मध्य एशिया में फैलने वाले महायान सम्प्रदाय का प्रवर्तक नहीं, तो यह बहुत अक्षा आचार्य अवश्य था। श्रश्वघोष के एक जीवन चरित्र के अनुसार अइ मध्य भारत का निवासी था और पूज्य प का
१ संयुक्तरत्नपिटक और धर्मपिटकनिदान, जिनका अनुवाद चीनी में ४७२ ई० मे हुआ, बताते हैं कि अश्वघोष कनिष्क का गुरु था। २ चीनी में इसका अनुवाद यात्रो-जिन (Yao-Tzine) (३८४.४५७ ई.) वंश के राज्यकाल में कुमारस्य ( कुमारशील १) ने किया उस अनुवाद से एम वैसिलीफ (M, Vassilief) ने संक्षिप्त जीवन तैयार किया, उसका अनुवाद मिस ई० लायल ने किया ।
३ तिब्बती बुद्धचरित की समाप्ति की पंक्तियां कहती हैं कि अश्वघोष साकेत का निवासी था [ इंडियन एंबिक्वेरियन सन् १९०३, पृ० ३५०] । ४ पूर्णयश लिखित जीवन चरित के अनुसार यह पार्श्व के अन्तवासी का शिष्य था।
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