________________
पचतन्त्र की वयवस्तु चौथे सन्या में लब्ध-प्रणाश झा वर्शन है। एक अन्दा और एक नाक में बड़ी धनिष्ठ मित्रता थी न की पत्नी ने नह बात सही न गई। उसने बीमारी का दिखावा किया और कहा कि सुखे अगर भारत हो सकता है ती केवख बन्दर का कलेजा खाने ले ही हो सकता है। विचारे नक को पानी की बात मानना पड़ी। उन एक दिन गन्दर को अपने घर श्राने का निमन्त्रण दिया । जब ना बन्दर को जल के अन्दर अपने मकान को ले जा रहा था तो सन्दर को उसकी बनाको का पता लग गया : उसने कहा----सिन्न ! तुमने पहले कभी नहीं कहा ? मैं श्रान हृदय तो वृक्ष पर ही छोड़ पाया हूँ। मूर्ख न के बन्दर की बात पर तत्क्षण विश्वास कर लिया और हृदय बिवा लाने के लिए बह बन्दर को पीठ पर बढ़ाए किनारे की तरफ मुड पहा । इन्दर में वृक्ष पर चढ़ कर अपनी जान बचा ली। नक ने बन्दर से पुनः मित्रता जोहने और घने घर बुद्धाने का प्रयत्न किया, पर बन्दर कब उसके चकमे में श्राने वाला था। बन्दर ने कहा-मैं गधा नहीं हूँ जो नौट पह । बस अब गधे की कहानी प्रारम्भ हो जाती है। इसी तरह सिलसिला जारी रहता है।
___ पाँचवे तन्त्र में अविमृश्यकारिता की कहानियों का दिग्दर्शन है । कहानी में बताया गया है कि एक ब्राह्मण अपने शिशु की चौकसी करने के लिए एक नेवले को छोड़ गया और फिर किस तरह करने अपने प्यारे उसी नेवजे की हत्या कर डाली । नेवले का मह रुधिर से सना हुभा देख कर नाह्मण ने सोचा इसने मेरे बच्चे को खा लिया है। वस्तुतः नेवले ने साँप को टुकड़े-टुकड़े करके शिशु की जान बचाई थी। तब ब्राह्मण की पत्नी को मा बडापश्चात्ताप हुश्रा और उसने एक नाई की कहानी सुनाई, जिसने सहकारी होकर अपनी स्त्री ही मार डाली थी। अन्त के दो तन्त्र बहुत ही छोटे हैं। पुराने कविषय संस्करणों में उनका श्राकार घटाकर नहीं के बराबर-सा कर दिया गया है, जिससे वे पिछले