Book Title: Sanskrit Sahitya ka Itihas
Author(s): Hansraj Agrawal, Lakshman Swarup
Publisher: Rajhans Prakashan

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Page 329
________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास है कि कुन्दमाजा राराजपुर निवासी कवि दिड नाग को कृत्ति हैं। दूसरी ओर, वैजोर वाली प्रति के अन्त में लेखक (Scribe) ने लिखा है कि यह अनूपराध के निवासी धीरनागकी कृति है। संस्कृत साहित्या में धीरनाग को अपेक्षा निस्संदेह दिङ नाग नाम ही अधिक प्रसिद्ध है। फिर पुस्तक के अन्त में कही हुई लेखक (Copyist ) की बात की अपेक्षा प्रस्तावना में कही हुई स्वयं अन्धकार को बात ही अधिक विश्वसनीय है, इसलिए आधुनिक विद्वान् धीरनाग की अपेक्षा दिङ नाग पाठ ही युक्ततर समझते है। (२) भवभूति के उत्तररामचरित के समान कुन्दमाला का कथानक रामायण के उत्तरकाण्ड से लिया गया है और इसमें सोता के बन में निर्वासन की, राम को उसका पता लगने की, और दोनों के पुनर्मिलना की कहानी दी गई है। वाल्मीकि के आश्रम में गोमती नदी में बहती हुई कुन्द-पुष्षों की माला देखकर राम ने सोता का पता लगा लिया था, इसीलिए नाटक का नाम कुन्दमाला रक्खा गया । (३) शैली और नाटकीय कला-कविदृष्ट शक्ति की दृष्टि से दिनाग भवभूति से घट कर है, परन्तु नाटककार के रूप में इसे भवभूति से अधिक सफलता मिली है। इस नाटक में सजीवता और क्रियावेग दोनों हैं तथा चरित्र-चित्रण भी अधिक विशदे और चित्रवत् मनोहर है । इसने भवभूति की कई त्रुटियो का भी परिष्कार कर दिया है। उदाहरणार्थ, न तो यह लम्बी लम्बी वक्तृताओं को पसन्द करता है, और न श्चमोत्पादित व न (जो नाटक की अपेक्षा काग्य के अधिक उपयुक हैं), तथा न इसने दीर्घ समास और न दुर्बोध पद हो प्रयुक्त किए हैं । उत्तररामचरित में करुण के साथ वीर रस का संयोग देखा जाता है; किन्तु इस सारे नाटक में अन्य रसों के मिश्रण से रहित शुद्ध १ कीलहान:-ऐपिन फिया इडीका १, १७१। २ देखिए, तत्रभवतोऽरारालपुरवास्तव्यस्य कैबेर्दिडं नागस्य कृति कुन्दमाला ।

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