________________
रूपककला का ह्रास
३१३
है -- परन्तु रूपक के क्षेत्र में तो प्रगति का बाघ और भी अधिक विस्पष्ट है। इस समय संस्कृत और भात भाषाओं के बीच भेद की खाड़ी धीरे धीरे बहुत चौड़ी हो चुकी थी। रूपकों की प्राकृत भाषाएँ as पुरानी होती गई और उनका स्थान पहले अपभ्रंश ने और वाद में बोलचाल की भाषाओं ने ने लिया । राजशेखर ने tags बोलचाल की भाषाओं से, विशेषतः महाराष्ट्री से, शब्द ले लिए थे । बाद के कृतिकारों की कृतियों में थोड़ा थोड़ा अन्स्यानुप्रास का प्रयोग भी बोलचाल की भाषा प्रभाव के कारण ही हुआ है । शनै: शन: बोलचाल की भाषाओं ने ही साहित्यिक भाषाओं का रूप धारण कर नया और संस्कृत या साहित्यिक प्राकृत में लिखे हुए रूपकों का प्रचार घटने लगा । कीर्ति के लिए लिखने वाले कवियों ने काव्य या साहित्य के किसी अन्य अंग का निर्माण करना प्रारम्भ कर दिया; कारण, संस्कृत के नाटक न तो साधारण जनता के ही अनुराग की वस्तु रह गए थे और न उनके लेखकों को धन से पुरस्कृत करने वाले बहुत राजा या जागीरदार ही थे। अतः कीर्ति प्राप्त करने की आशा व्यर्थ थी । हाँ, नाटक लिखने की प्रथा वर्तमान शताब्दी तक चली आई |
संस्कृत नाटक लिखकर स्वान्तः सुखाय संस्कृत