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परिशिष्ट (१)
३१७ साहित्य के अनुशीलन को तेज करने में और अधिक सहायता प्रदान की। और रॉथ (१८२१ - १३) स्वयं वदिक भाषा-विज्ञान ( Philalogy ) की नींव डालने वाला था। उसका उदाहरण अन्य अनेक सरस्वती-सेवियों के मन में उत्साह को उमंगें पैदा करने वाला सिद्ध हुआ। वोऐना ( Vienna ) के प्रो० वूहूलर ( Buhler ) ने माना देशों के लगभग तीस विद्याविशारदों की सहायता के बल पर समग्र वैदिक और श्रेय संस्कृत-साहित्य का एक विशाल विश्वकोष प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया | १८८ ई० में उसका परलोकवास हो जाने पर गोटिंजन ( Gottingen ) के प्रोफैसर कीलहान ( Kielhorn) ने इस परम बृहदाकार अन्य को पूर्ण करने का निश्चय किया ।
(१०) ए. कुन ( A, Kuhn ) और मैक्समूलर ( Max Muller ) ने बड़े उत्लाद और श्रम के साथ अपने अध्ययन का विषय वैदिक धर्म को बनाया। उनके अनुसन्धानों से तुलनात्मक पुराणविद्या ( Mythology ) के अनुशीलन की श्राधार- शिक्षा का आरोपण हुआ ।
(११) वर्तमान शताब्दी का प्रारम्भ होने तक यूरोपियन पण्डितों ने प्रायः सभी वैदिक और संस्कृत प्रन्थों का सम्पादन तथा भकिं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का अनुवाद कर डाला था । श्रम अगले अनुसंन्धान के लिए क्षेत्र तैयार हो चुका था। तब से बहुत बड़ी संख्या में यूरोपियन विद्वान बड़े परिश्रम के साथ भारतीय आायों के प्राचीन साहित्य आदि के अनुसन्धान में लगे हुए हैं। इन ख्यातनामा लेखक' के लेखों को
१ इनमे से कुछ प्रसिद्ध के नाम हैं
मैक्डॉनल (Macdonell), हॉपकिंस ( Hopkins), हारविंट्ज ( Horrwitz), विंटर्निट्ज (Winternitz), पाजिटर (Pargiter), श्रील्डनबर्ग ( Oldenbutg), पीर्टसन ( Peterson ). इटल (Hertel), ऐजन ( Edgerton) रिजवे (Ridgeway), कीथं (Keith ) |