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परिशिष्ट (१) भारतीयों के ऊपर उनके दो रोति-रिवाजों के सार शासन करने की श्रावश्यकता को समझने वाला पहजा अंग्रेज रन हेस्टिग्ज था। अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत करने के जिए उसने प्रयत्न भी किया, जिला परिणाम यह हुआ कि १७७६ ई. में फारसी अनुवाद के माध्यम द्वारा संस्कृत की कानूनी किताबों का एक पार-सग्रह अंग्रेजी भाषा में तैयार किया गया।
(३) वारन हेस्टिग्ज़ की प्रेरणा से चार्लस चिम्किस ने संस्कृत पढकर १७८९ ई० में भगवद्गीता का और १७८७ ई० में हितोपदेश का इंग्लिश अनुवाद किया।
(४) विल्किम के अनन्तर संस्कृत के अध्ययन में भारी अभिरुचि दिखाने वाला सर विलियम जोन्स (१७४६-१४ ई०) था। इसने १७८४ ई० में एशियाटिक सोसायटो श्राद बंगाल को नींव डाली, १७८९ ई० में शकुन्तला नाटक का और थोडे ही दिन बाद मनुस्मृति का इंग्लिश अनुवाद प्रकाशित किया। १७६२ ई० में इसने ऋतुसंहार का मूल संस्कृत पाठ प्रकाशित किया।
(५) इसके अनन्तर संस्कृत का प्रसिद्ध विद्वान् हेनरी टॉमम कोल्छुक ( १७६१-१८३७ ई० ) हुा । इसी ने सब से पहले संस्कृत भाषा और संस्कृत साहित्य के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग प्रारम्भ किया। इसने कतिपय महत्त्वशाली ग्रंथों का मूलपाठ और अनुवाद प्रकाशित किया तथा संस्कृत साहित्य के विविध विषयों पर कुछ निबन्ध भी लिखे। बाद के विद्वानों के लिए इसकी प्रस्तुत की हुई सामग्री बड़ी उपकारिणी सिद्ध हुई।
यगेप में संस्कृत के प्रदेश की कहानी बड़ी कौतूहलजनक है। अलैग्ज़ांडर हैमिल्टन ने ( १७६५-१८२४ ई.) भारत में संस्कृत पढ़ी । सन् १८०२ ई० में जब वह अपने घर जाता हुआ क्रॉस से गुजर रहा था इंग्लैण्ड और फ्रांस में फिर नए सिरे से बढ़ाई छिड़ गई और