Book Title: Sanskrit Sahitya ka Itihas
Author(s): Hansraj Agrawal, Lakshman Swarup
Publisher: Rajhans Prakashan

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Page 341
________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास 1) जातकों और महानग्ग इत्यादि में आए हुए लिखने के उल्लेख (३) अशोक के शासनों में श्राए हुए प्राचीन लेख सम्बन्धी तथ्य (३) ईरानी मुद्राओं पर भारतीय वर्ण; (४) पुरन ( Eran) सिक्के के बारे में प्रचलित उपाख्यान और (१) भट्टिमोलु (Bhattiprolu ) का शिलालेख । इन सब बातों से डा० बुह्नर ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि भारतीय वर्णमाला का मूल-जन्म होना ई० पू० चौथा शताब्दी से पूर्व ही प्रारम्भ हुआ (यही अनुमान इससे पूर्व मैक्समूलर द्वारा प्रकट किया जा चुका था); सम्भवतया ई० पू० का यह काल छठी शताब्दी (ई० पू०)था और भारतोय वर्णमाला का अभिप्राय ब्राह्मो वर्णमाला है। फोनिशिया की वर्णमाला =५० ई० पू० से पहले भी विद्यामान थी यह बात सिंजिरली ( Sinjirli ) के शिलालेख से और असीरिया के बाटों ( weights) पर खुदे हुए अक्षरों से अच्छी तरह प्रमाणित होती है। उक्त महोदय ने फीनिशियन और ब्राह्मो दोनों वर्णमालाओं की तुलना करके मालूम किया है कि ब्राह्मो वर्णमाला फ्रोनिशियन (Phoenician) वर्णमाला से निकाली गई है। वाणों का रूप बदलने में जिन विधियों से काम लिया गया है बुलर ने उन्हें भी निश्चित करने का प्रयत्न किया है, उदाहरणार्थ, वर्णों के सिर पैरों की ओर कर दिये गये हैं, दाई ओर से बाई ओर को लिखने की रीति को १ बुह्नर का प्रयत्न यह सिद्ध करने के लिए नहीं है कि ब्राह्मी वर्ण माला अवश्य विदेशी चीज़ है या भारतीय विद्वानों की प्रतिभा से इसकी उत्पत्ति होने की सम्भावना ही नहीं हो सकती है। यह अंगीकार करके कि इस वर्णमाला का जन्म विदेशी तत्त्वों से भी होना सम्भव है, उसने केवल उस विधि को समझाने की चेष्टा की है जिसके द्वाग इसका जन्म शायद हुआ हो।

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