Book Title: Sanskrit Sahitya ka Itihas
Author(s): Hansraj Agrawal, Lakshman Swarup
Publisher: Rajhans Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 347
________________ ३२६ सस्कृत साहित्य का इतिहास जातियों का परस्पर मिलना-जुलना, एक दूसरे के यहां आना-जाना हुआ करता था । परन्तु अभी तक इसका प्रमाण भी नहीं मिल सका है। सम्भवतः इस प्रकार का मेल-जोल कभी हुआ भी होगा तो समुद्र तटवास्तव्य जातियों का हुना होगा । अतः यदि भारतीय लिपि कभी किसी दूसरी जाति को लिपि से निकाली हुई हो सकती है, तो दक्षिणी समिटिक जातियों की लिपि से निकाली हुई हो सकती है, परन्तु डा. बुलर ने इसका प्रत्याख्यान किया है। (६) हैदराबाद राज्य के अन्दर प्रागैतिहासिक टोलों की खुदाई ने वर्णमाला को इतिहास के आश्रय से निकाल कर प्रागैतिहासिक काल में पहुंचा दिया है । वस्तुतः ऐसा ही होना भी चाहिये । कुछ युक्तियों के बल पर विश्वास करना पडता है कि वर्णमाला का जन्म प्रारम्भिक मनुष्य के जीवन काल में और अंगोपचय बाद में हुआ होगा इस संबंध में नीचे लिखी कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं : (क) हैदराबाद राज्य के टोलों में से निकले हुए मिट्टी के बर्तनों की बनावट ऐसी है जो १५०० ई० पू० से पहली ही होनी चाहिये। (ख) मद्रास के अजायबघर में रखे हुए मिट्टी के कुछ बर्तन उत्तर पाषाणयुग के हैं जो ३००० ई० पू० से पहले ही होनी चाहिए। (ग) अनन्तरोक्त बर्तनों पर कुछ चिल मध्यवर्ती स्वरों के भी, कम से कम पांच चिह्न, प्राचीनतम ब्राह्मी लिपि के वर्णो से बिलकुल मिलते है। (घ) ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें कुछ चिन्ह मध्यवर्ती स्वरों को भी प्रगट करने के लिए मौजूद है। उदाहरणार्थ प्रो-कार तथा इ-कार के लिए भी चिन्ह मिलते हैं। अतः अदि हम भारत के प्रागैतिहासिक मृण्मय पात्रों पर वित पंकेतों को ब्रह्मी लिपि के अक्षरों का पूर्वरूप मानें तो यह बिल्कुल युक्किसंगत होगा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 345 346 347 348 349 350