Book Title: Sanskrit Sahitya ka Itihas
Author(s): Hansraj Agrawal, Lakshman Swarup
Publisher: Rajhans Prakashan

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Page 333
________________ ३१२ संस्कृत साहित्य का इतिहास (११६) कृष्णमिश्र कष्ण मिश्र का प्रबोधचन्द्रोदय एक महत्त्वपूर्ण भप्रस्तुत प्रशंसात्मक ( Allegorical)रूपक है। इसकी रचना किसी मन्दुमति शिष्य को प्रत वेदान्त के सिद्धान्त समझाने के लिए की गई थी। इस रूपक में बड़ी सुगम और विशद रीति से अहत वेदान्त की उत्कृष्टता का प्रतिपादन किया गया है। भाव-वाचक संज्ञाओं को व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ मान कर पात्रों की कल्पना की गई है। ____कपूयचरित 'महामोह' काशी का राजा है। काम, क्रोध, लोभ, दम्भ और अहङ्कार उसके सचिव हैं। इसके विपक्षी हैं-पुण्यचरित प विवेक, जिनके सहायक हैं सन्तोष, प्रशोधोदय, श्रद्धा, शान्ति और क्षमा इत्यादि सब सद्गुण । महामोह इन सबको इनके घर से मार भगाता है । तब एक आकाशवाणी होती है कि एक दिन विवेक ईश्वरीयज्ञान के क्षेत्र में नौट कर या जाएगा और यथार्थज्ञान की प्राप्ति महामोह के राज्य का नाश कर देगी। अन्त में विवेक पक्ष की गौरवशाली विजय और महामोह की पूर्ण पराजय होती है। समय इस रूपक को प्रस्तावना में प्रसंगवश न प कीर्तिवर्मा से प्राप्त राजा कर्णदेव की पराजय का उल्लेख या गया है। कहा जाता है कि राजा कीर्तिवर्मा ने १०४६ से ११०. ई० तक राज्य किया था और १०६५ ई० के श्रासपास राजा कर देव को हराया था। अतः कृष्ण मिश्च का समय निस्संदेह ११ वीं शताब्दी के अत्तराद्ध में मानना चाहिए। (११७) रूपककला का हरास मुरारि और राजशेखर के थोड़े ही दिन पीछे रूपककला का हास प्रारम्भ हो गया। इस समय संस्कृत साहित्य के अन्य क्षेत्रों में भी अवनति के निश्चिात बाण दिखाई देने लगे थे--अगम (Classical) संस्कृत की प्राति का काब११००ई के आसपास समाप्त हो जाता

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