Book Title: Sanskrit Sahitya ka Itihas
Author(s): Hansraj Agrawal, Lakshman Swarup
Publisher: Rajhans Prakashan

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Page 330
________________ दिनाग की कुन्दमाला ३०६ करुण रस की ही प्रधानता है। भाषा सुगम और हृदय ग्राहिणी तथा संवाद कौतुहतवर्धक और नाटक गुणशाली हैं । यदि उत्तररामचरित नाटकीय काव्य है तो कुन्दमाना सच्चा नाटक - श्रभिनय के नितान्त उपयुक्त | दिङ्नाग के पात्र वैसे कल्पनाप्रसूत नहीं हैं जैसे कालिदास के हैं, ये वस्तुतः भवभूति के पात्रों से भी अधिक पार्थिव हैं। इसे यद्यपि अनुप्रास और यमक अलङ्कार बड़े प्रिय हैं, तथापि इसने विशदअर्थ यय करके कभी इनका प्रयोग नहीं किया है। इसकी शैली की एक और विशेषता यह है कि यह कभी कभी लय-पूर्ण गद्य व्यवहार में जाता है। 1 (४) समय - कुन्दमाला की कथा बिल्कुल बद्दी है जो उत्तररामचरित की है। दोनों के तुलनात्मक अध्ययन से विस्पष्ट होजाता है कि कुन्दमाना लिखते समय इसके लेखक के सामने उत्तररामचरित रक्खा हुआ था। कई बाबों में कुन्दमाला उत्तररामचरित का ही बहुत कुछ विस्तृत रूप है । भवभूति के नाटक में हो राम को स्वीता की पहचान केवल स्पर्श से ही होती है, परन्तु इसमें स्पर्श के अतिरिक्त पहचान के और भी पाँच साधन हैं, वे हैं. सीता शरीररूपशौं वायु, कुन्द-माला, सीता का जलगत प्रतिबिम्ब, पदचिन्ह, और दुकूल । उत्तरामचरित में राम और सीता का मिलन केवल एक बार दोता है, परन्तु कुन्दमाला में दो बार। ऐसे और भी अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, कुन्दमात्रा में कई ऐसे प्रसङ्ग भी हैं जो उत्तररामचरित को देखे बिना असमाधेय ही रहते हैं। उदाहरणार्थ, यह जान कर कि राम मेरे प्रति निरनुक्रोश हैं, सीता गर्व का अनु भव करती है ( देखिए, निरनुक्रोश इत्याभिमानः, अङ्क है, पथ १२ के पूर्व ) । कुन्दमाला में ढूंढने से ऐसा कोई भी अवसर नहीं मिलता जिससे सीता के इस अभिमान करने का कारण ज्ञात हो सके ! परन्तु उत्तमचरित में जब हम राम को वच्यमाणा पद्म बोलता हुआ सुनते हैं सब बात विस्पष्ट हो जाती है:

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