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संस्कृत साहित्य का इतिहास
है कि शापडान, निर्वासन, राष्ट्र-विपत्ति, दशन, चुम्बन, प्रशन, शयन इत्यादि का अभिनय सर्वथा प्रतिषिद है।
(१०७) कतिपय महिमशाली रूपक मुद्रित अथवा अद्यावधि अमुद्रित संस्कृत रूपकों की संख्या छः सौ से अधिक है; परन्तु उनमें से महत्वपूर्ण जिनका यहां उल्लेख सचित होगा, उँगलियों पर गिनने योग्य ही है। भास, कालिदास और अश्व. घोष के रूपकों का वर्णन तीसरे अध्याय में हो चुका है। दूसरे प्रसिद्ध रूपक ये हैं
(3) शूद्रक का पृच्छकटिक, (२) रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानन्द, जो श्रीहर्ष के बनाए बतलाए जाते हैं, (३) विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, (४) भट्ट नारायण का वेणीसंहार, (५) भवभूति का मालतीमाधव, महावीरचरित और उत्तरामचरित, (६) राजशेखर का बाबमारव इत्यादि (७) दिङ्नाग की कुन्दमाता, (क) मुरारि का अनर्धराधव, और (8) कृष्णमिक्षा का प्रबोधचन्द्रोदय ।
(१०८) शूद्रक संस्कृत साहिस्य में नृप शूद्रक महान् लोकप्रिय नाटककार है। इसके नाम का उल्लेख वेतालपञ्चविंशति में, दण्डी के दशकुमारचरित में, बाण के हर्ष चरित्र और कादम्बरी दोनों ग्रन्थों में, तथा सोमदेव के कथासरित्सागर में पाया जाता है। कल्हन ने इसे नप विक्रमादित्य से पूर्वभावी बतलाया है। इसका जीवनचरित्र अङ्कित करने के लिए कई अन्य' बिखे गए थे। मृच्छकटिक की प्रस्तावना में भी इसके जीवन
१.-इनमे से उल्लेखनीय ये हैं :
(क) शूद्रकचरित-इसका उल्लेख वादिधघाल ने काव्यादर्श की अपनी टीका में किया है । (ख) शूद्रककथा- इसके रचयिता रामिल और सौमिल थे । इसका संकेत राजशेखर की कृति में मिलता है । (ग)
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