________________
२८८
संस्कृत साहित्य का इतिहास
की यह बात कितनी विश्वसनीय है कितनी नहीं, क्योंकि हमें धावक के विषय में और कुछ ज्ञात नहीं है । दूसरी ओर, सुभाषितसंग्रहों में इषवर्धन के नाम से उद्धृत कई बडे ही रमणीय पद्य मिलते हैं ।
(३) संयुक्त कर्तृत्व नागानन्द में बौद्धधर्म का रङ्ग देखा जाता है । नान्दी में भगवान् बुद्ध की स्तुति है । नायक जीमूतवाहन बोधिसत्व है, और 'अहिंसा परमो धर्मः' के सिद्धान्त पर बल दिया गया है । डा० मैकडॉनल (Macdonell) ने कहा है कि इन रूपकों के रचयिता पृथक् पृथक् हैं; परन्तु वच्यमाण हेतुश्रों से हम इस विचार को ब्राह्म नहीं मान सकते ( १ ) इन तीनों रूपकों की प्रस्तावनाओं से इनका कर्ता एक दो व्यक्ति पाया जाता है; (२) इन में से एक के पद्य दूसरे में पाए जाते हैं; उदाहरणार्थ एक ऐसा पद्म है जो स्नावली और प्रियदर्शिका दोनों में आया है, तथा दो ऐसे हैं जो रस्नावली और नागामन्द दोनों में देखे जाते हैं, और (३) इन तीनों रूपकों की शैली तथा वचोभङ्गी इतनी अभिन्न हैं कि पाठक को इनके रचयिता की एकता में सन्देह उत्पन्न नहीं होता ।
(ख) कथावस्तु - ( 1 ) रश्नावली और प्रियदर्शिका दोनों की दोनों नाटिका हैं, दोनोंमें वार २ अङ्क हैं तथा दोनों की कथा वस्तु एवं रूपरेखा में भी बहुत अधिक समानता है। दोनों में नायक उदयन और महिषी वासवदसा है । रत्नावली में सागरिका ( लङ्का की राजकुमारी रत्नावली) और उदयन के प्रणय तथा अन्त में विवाह होजाने का वर्णन है । इसका आयोजक सचिव यौगन्धरायण था । जहाज के डूब जाने की विपत्ति श्राने पर रत्नावली दयनीय दशा में उदयन के दरबार में पहुँची । कुछ
उदाहरण उपस्थित करती है, तथापि हम निश्चय से नहीं कह सकते कि उस टीका का और रत्नावली का लेखक एक ही व्यक्ति है । उस टीका में से अभिनन्दनगुप्त, शारदावनय और बहुरूपमिश्र ने उद्धरण दिए हैं ।