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संस्कृत साहित्य का इतिहास
(ड) यह शिखरिन्द के निपुण - निर्माण में खूब अभ्यस्त है । दूसरे बन्द जिनका अधिक बार प्रयोग हुआ है शादू जविक्रीडित] और fast हैं।
काल--- सौभाग्य से भवभूति का समय प्रायः निश्चित-सा ही है । बाप ने अपने हर्षचरित की भूमिका मे इनका नाम नहीं लिया, परन्तु वामन ने (८ वीं श० ) इसकी रचना में से उद्धरण दिए हैं और राजशेखर (४०० ई० के लगभग) तो अपने आपको भवभूति का अवतार ही कहता है' । कल्हण ने लिखा है कि भवभूति और वाक्पतिराज कन्नौज-राज यशोवर्मा के आश्रय में रहा करते थे । यशोवर्मा को काश्मीर के शासक वखितादिस्य ने परास्त किया था और कहा जाता है कि ललितादित्य ने ७२६ ई० में चीन के राजा के यहाँ अपना राज-दूल भेजा । वाक पतिराज ने अपने अन्य गउडवह में भवभूति की प्रशंसा की है इसके लिए 'आज भी" का प्रयोग किया है। यह 'भान भी' बताया है कि सवभूति वा पतिराज से पहले हुआ था और चाकूपतिराज के काल में इसका यश खूब फैल चुका था । इस हिसाब से इम भवभूति का समय के आसपास मान सकते हैं।
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१ देखिए
बभूव वल्मीकभवः पुरा कविस्तः प्रपेदे भुवि भतृ मेण्ठताम् । स्थितः पुनर्यो भवभूतिरेखया स बर्तते सम्प्रति राजशेखरः ॥
( बा. रा. १,१६ )
२ कविवाक्पतिराजः श्रीभवभूत्यादि सेवितः । जितौ ययौ यशोवर्मा तद्गुणस्तुतिवन्दिताम् .. (४, १४४)
३ भवभूद्दजलहि निग्गयकव्यामयरसकरणा इव स्फुरन्ति । जरस विसेता अज्जवि वियडेसु कहाणिवेसेस (गउडवाइ७९६ )