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भवभूति
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'लिनी हैं। एक उदाहरण देखिए । मालती की बातों को छुपकर सुनता
हुआ माधव अपने वयस्क मकरन्द से कहता
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म्लानस्य जीवकुसुमस्य विकासनाभि सन्तर्पणानि सकलेन्द्रियमोहनानि । श्रानन्दनानि हृदयैकरसायनानि
दिष्टया मयाप्यधिगतानि वचोमृतानि ॥ (मा. मा. ४, इस पथ के अन्त्यानुप्रास में, जो जान-बूझकर जाया गया कितना प्रभाव है ।
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वासन्ती ने राम को जो हृदयविदारक उपालम्भ दिया वह भी इसी साँचे में ढालकर faखा गया है:
एवं जीवितं स्वमसि मे हृदयं द्वितीयं
... (क) व्याकरण के अप्रचलित रूपों और कोश- संग्रह- सूचक नाना शब्दों के प्रयोग का यह बड़ा रसिक है ।
(अ) इसके रूपकों के विशेषतः उत्तररामचरित के पात्रों में वैयक्तिक वास्तविकता देखने में लाती है । सदाहरणार्थं राम और सीता ravi शोक प्रकाशक शब्द देखिए-
किमपि किमपि मन्दं मन्दमाशियोगात् ॥
(ट) इसकी प्रेम-भावना का स्वरूप अपेक्षाकृत ऊँची श्रेणी का है और संस्कृत साहित्य में उपलभ्यमान साधारण प्रेम-भावना के स्वरूप से freete set fधक उदात्त है । उदाहरणार्थं देखिए- श्रद्वैतं सुख दुःखयोः ...
( 8 ) भवभूति आत्म-स्वरूप से परिचित था और इसे अपनी कृति पर गर्व था । इसका प्रमाण इसके अपने वचनों से मिलता है
अहो सरसरमणीयता संविधानस्य ( मा० मा० ६, १६, २) और, अस्ति वा कुतश्विदेवं भूर्त विचित्ररमणीयोज्ज्व तं महाप्रकरणम् (मा० मा० १०, २३, १८) ।