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सस्कृत साहित्य का इतिहास
कालिदास के मेषदूत का और विक्रमोर्वशीय के हौधे अक्क का प्रभाव परिबक्षित होता है। माधय मेष के द्वारा अपनी प्रणष्टप्रिया को सन्देश भेजना चाहता है । यद्यपि भभूति में कालिदास की-सी मनोरमता और मादकता नहीं है, तथापि इस अङ्क में यह दुःखपूर्ण करारस के वर्णन में कालिदास से बढ़ गया है।
(ग) उत्तररामचरित-प्रत्तररामचरित निश्चय ही भवभूति की श्रेष्ठ कृति है । जैसा कि इसने स्वयं कहा है-"शब्दब्रह्मविदः कवेः परिपतप्रज्ञस्य वाणीमिमाम्" (उ० रा. च ७, २०) यह इसकी परिपक्क प्रतिभा की प्रसूति है। रामायण के उत्तरकाण्ड में आया है कि एक निराधार बोकापवाद को सुनकर राम ने सीता का परित्याप कर दिया था। इसी प्रसिद्ध कथा के गर्भ से उत्तररामचरित की कथा ने जन्म लिया है, किन्त दोनों के अङ्ग-संस्थान में बड़ा भेद है। अपनी नाटकीय धावश्यकतानो के अनुसार लेखक ने उल्लिखित कथा में कई हेर. फेर करके इसके कान्त कलेवर को और भी अधिक कमनीय कर दिया है। इसकी अत्पादित कुछ नवीनताए ये है-(१) चित्र-पट-दर्शन का दृश्य, (२) वासन्ती और राम की बातों को अहस्य रहकर सुनने वाली सीता, (३) वासन्ती के सामने राम का सीता के प्रति स्नेह स्वीकार करना, (४) लव और चन्द्रकेत का युद्ध, (५) वसिष्ठ और साधुओं का वाल्मीकि के श्राश्रम में शाना, और (६) राम के उत्तर चरित का उसी के सामने अभिनय ।
सात अकों के इस नाटक में भवभूति ने करुण रस के वर्णन को इसका परमसीमा तक पहुँचा दिया ' . सच पूछो तो इस गुण में
- देखए,
अपि पावा रोदित्यपि दलति वज्रस्य दृदयम् । अथवा,
करुणस्य मूतिरथवा शरीरिणी विरहव्यथेव ।।