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संस्कृत साहित्य का इतिहास
सुन्दरी की हरा का दोषी ठहराया जाना जिसे वह प्रायों से rfas प्यार करता था | मैजिस्ट्रेट ने सब के सामने चारुदत्त से प्रश्न कियावसन्तसेना के साथ तुम्हारा क्या सम्बन्ध है ? कुलीनता, सामाजिक प्रतिष्ठा ae area मानमर्यादा के भावों ने चारुदरा को एक मिनट के लिए प्रेरणा की कि तू इस प्रश्न को टाल जा; परन्तु शकार ने बार बार जोर दिया तो उसने उत्तर दिया "क्या मुझे कहना पड़ेगा कि वसन्तसेना मेरी प्रेयसी है ? अच्छा, यदि है ही तो इसमें क्या दोष है ? यदि दोष भी है तो यौवन का है, चरिथ्य का नहीं ।" चारुदत्त को प्राण दगड निशचित हो गया। इसी बीच में वसन्तसेना होश में आई । वह दौड़ो दौड़ी शूली-स्थान पर पहुंची और चारुदत्त की जान बच गई। इस अवसर पर राजधानी में एक क्रान्ति होगई । श्रार्यक, जिसे चारुदा ने जेल से मुक्त होने में सहायता दी थी, उस समय के शासक नृप पालक को गद्दी से उतार कर उज्जैन का राजा हो गया । चारुदत्त के भूतपूर्व ४५कार का स्मरण करते हुए उसने चारुदत्त को अपने राज्य का एक उच्च अधिकारी नियुक्त किया ।
ग्रालोचना-कालिदास तथा भवभूति की उत्कृष्ट कृतियों और सृष् कटिक में एक दर्शनीय भेद है। इसमें न तो नायक ही सद्गुणों का दिव्य आदर्श है और न प्रतिनायक हो पाप की प्रतिमा | चारुदस में कई असाधारण उदात्त गुण हैं, किन्तु यह दुष्यन्त की तरह श्रेष्ठंमन्य नहीं है । यह पार्थिव प्राणी है, यह धतकीड़ा को घृणित नहीं समझता, इसे नाचना और गाना भाता है और यह सङ्गीतालयों में जाना पसन्द करता है । वसन्तसेना में भी न तो कालिदास की शकुन्तला जैसी नवयुवतियों की मनोहारिता है और न भवभूति की सीता जैसी प्रौदार्थों की गौरवशालिता । विकार देतुथों के चतुर्दिक विद्यमान होने पर भी वसन्तसेना का मन स्वच्छ और चारुदत्त पर अनुराग श्रवदात रहा। पाशव कामवृत्ति का वशीभूत शकार जब वसन्तसेना को मार डालने की धमकी देता है और कदर्थित करता है, तब भी चारु