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अध्याय १५
रूपक (१०४) रूपक का उद्भव । रूपक का उद्भव अंधेरी गुहा में निहित है । साहित्य-क्षेत्र में बच निकले हुए रूपक के प्राचीनतम नमूने कालिदास के या उसके पूर्वसामियों के प्रौढ़ रूपक हैं, जो हमारी आँखों के सामने बिजली की तरह चमकते हुए पाते हैं। संस्कृत रूप के अप्रवयं उभव को समझाने के लिए भिन्न-भिन्न वाद धड़े गए हैं। उनमें से कुछ का सम्बन्ध धर्म की धारणा से और कुछ का लौकिक लीलाओं से है।
(क) परंपरागत वाद । साम्प्रदायिक बाद के अनुसार नाट्य-विज्ञान के प्राविर्भाव का स्थान द्य तोक है। रजत-काल के प्रारम्भ में देव और मयं मिल कर ब्रह्मा के पास गए, और उन्होंने उससे प्रार्थना की कि हमें मनोविनोद की कोई वस्तु प्रदान की जाए । ब्रह्मा ने ध्यानावस्थित होकर नाट्य-वेद प्रकट किया। इसके लिए उले चारों वेदों का सार निकालना पड़ा--ग्वेद से नस्य, सामवेद से सङ्गीत, यजुर्वेद से अमिनय और अथर्ववेद से रस । शिव ने इसमें ताण्डवनृत्य का, पावती ने नास्यनत्य का, और विष्णु मे नाटक की चार वृत्तियों का सामवेश किया। स्वर्गलोक के चीफ इंजिनियर विश्वकर्मा ने रंगशाला का निर्माण किया। सबसे प्राचीन रूपक,जो