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रामायण-महाभारत का प्रभाव
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सके उस भाग में, जो असली समा जाता है, नाटक शब्द सो
वादयन्ति तथा शान्ति लास्यन्त्यपि चापरे । नाटकान्यपरे प्राहुहास्यानि विविधानि च ॥ (३, ६६, ४) रामायण के बाज-काण्ड में भिन्न-भिन्न रसों का उल्लेख पाय। जाता है। यथा--
रसैश्शृङ्गारकरुणहास्य भयानकैः।
वीरादिभी रसैयु के काव्यमेतद्गायताम् ॥ (१, ४, ६) अधोऽबतायमाण पंक्ति में शैलूष शब्द पाया है--
शैलूषाश्च तथा स्त्रीमिर्यान्ति ॥ (२, ८३, १५) इसी प्रकार सधरा, नाटक तथा इसी वर्ग के अन्य शब्द महाभारत में भी पाने हैं। उदाहरणार्थ देखिये---
इत्यववीत् सूत्रधारस्सूतः पौराणिकस्तथा ।
नाटका विविधाः काव्याः कथाख्यायिककारकाः ।।
(२, १२, ३६) पानश्च तथा सर्वे नटनतंकगायका. ।।
(३, १५, १३) नाटक का पता हरिवंश से भी जगवा है। इसके अतिरिक्त, रामायण महाभारत की कथाओं का, नाटकान्तर्गत कार्तालाप को उच्चस्वा से पढ़कर सुनाने की प्रथा पर जो प्रभाव पड़ा, हम उससे भी इनकारी नहीं हो सकते हैं। सामाजिक और धार्मिक सभा-सम्मेलनों में जातीय कविता को अक्ष स्वर से पढकर सुनाने का काम मन्दिरो और सैद्वानो में महीनों अलवा था। धीरे-धीरे सर्वसाधारण को संस्कृत का समझना कठिन होता चला गया। इस लिए भारतों और मागधों ने बोल-चाल की भाषा के बालय सम्मिलित करने प्रारम्भ कर दिए, और शायद