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संस्कृत रूपक की विशेषताए
(२) संस्कृत रूपक आकार की दृष्टि से भी यूनानी रूपकों से मेल नहीं खाते हैं। मृच्छकटिक का आकार ऐस्काईलस (Aeschy lus ) के प्रत्येक रूपक के आकार से तिगुना है। दूसरी ओर, जितने समय में यूनामी लोग एक ही बैठक में तीन दुःखमय (Tragedies ) और एक प्रहसन (Farce) का खेल कर लेते थे, भारतीय यदि रूपक बम्बा हुआ तो केवल एक ही रूपक का अभिनय करते थे ।
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(६) यूनानी के मुकाबिले पर संस्कृत रूपक स्वरूप में वस्तुत' रमणीय- कल्पना- बहुल होता है ।
संस्कृत रूपक अत्यन्त जटिल जाब है । साहित्य दर्पण ने रूपक के मुख्य दो भेद किए हैं-रूपक और उपरूपक | प्रथम के पुनः दस और चरम के अठारह उपभेद किए गए हैं। संस्कृत रूपक का अपना विशिष्ट रूप है' । इन नाना श्राधारों पर हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि संस्कृत रूपक अवश्य प्रकृष्ट प्रतिभा की एक भारतीय प्रसूति है, यह किसी विदेशी साहित्य-तरु की शाखा नहीं है। हॉरविट्ज़ (Horrwitz) कहता है :--"क्या हम कभी यह कहते है कि चूँकि पीकिंग में लीपज़िग और धीमर से भी बहुत पहले से प्रक्षा भवन विद्यमान थे, अतः जर्मन-माटक चीनी से किया हुआ ऋण है ? तब फिर भारत के प्रसङ्ग में क्यों ! यदि नाटक-कला का उद्भव चीन में और यूनान में परस्पर निरक्षेप हुआ था, तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता" । (१०६ ) संस्कृतरूपक की विशेषताएँ ।
संस्कृत रूपक की कुछ विशेषताएँ-- देश और काल की एकता का न मानना, सुख तथा दुःख की घटनाओं का सुन्दर मिश्रण, दुःखांतता का पूर्ण अभाव े, दूसरे देशों के नाटकों की अपेक्षा अधिक प्राकार
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१ विस्तृत विवरण के लिए प्रघट्टक १०६ देखिए ।
२ नियम यह है कि संस्कृत रूपकों में मृत्यु का दृश्य नहीं दिखाया जाता है और अन्त सुखमय रक्खा जाता है । इस नियम का कठोरता