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पह्नवी संस्करण और कथा की पश्चिमी यात्रा २६१
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Prore) ४८६ ई० में किया। तब से यह कई बार मदित हो चुका है। इस अनुवाद का महत्त्व इसलिए है कि इसने जमनसाहित्य पर बड़ा प्रभाव डाला और वह डैनिश, प्राइसलैपिडक, डच और स्पैनिश अनुवादों का (१६४३ ई.) मूड बना । स्पेनिश का अगवाद इटैलियन में १९४६ ई. में हुना, और इसका अनुवाद च में ५५५६ ई० में हुश्रा।
ए० ऐक. डोनी ने बैंटिन का सोधा अनवाद इटैलियन में किया। यह दो भागों में सन् १५५२ ई. में वीनिस में प्रकाशित हुआ। इसके प्रथम भाग को ११७० ई० में सर टामस नॉर्थ ने इग्लिश में धनूदित किया।
अरबी संस्करण का फारसी अनुवाद ईसा की बारहवीं शताब्दी के प्रथमाद्ध में अबुल-मनाली नबल्ला ने किया । यह अनुवाद मूल बना अन्यारे सुहेली का, जो १४६४ ई. के इधर उधर हुसैन ने तैयार की। श्रागे चलकर इसका अनुवाद ईसा की सोलहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में अली ने तुर्की भाषा में किया। फिर इस तुर्की का अनुवाद च में हुआ और उसका अनुवाद डच, हंगारियन, जर्मन और मलए तक में हुआ ।
इन औपदेशिक जन्तु-ऋथाओं का सबारे अधिक महत्वपूर्ण उपयोग करने वाला ला फ्रॉनटेन ( La Fontaine) हुश्रा । श्रीपदेशिक जन्तु कथाश्रा की पुस्तक के अपने दूसरे संस्करण में (१६७८ ई.) वह साफ तौर पर मानवा है कि अपनी नई सामग्री के लिए (७-४) मैं भारतीय विद्वान् पिल्प का ' ( Pilpay ) ऋणी हूँ। नीचे दी हुई सारणी से यह बात श्रासानी से समझ में आ जाएगी कि भारतीय ओपदेशिक जन्तुकथा ने पाश्चात्य देशों में किस किस द्वार से प्रवेश किया ।
१ विद्यापति का अपभ्रंश ।