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वृहत्कथा संस्करण, अर्थात् उत्तरपश्चिमीय संस्करण २५६
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के स्थान पर कृदन्तीय क्रियापद और कर्तरि प्रयोग की जगह कर्मणि प्रयोग अधिक है। कुछ पद्य, लेखक के अपने बनाए प्रतीत होने हैं। इलले लेखक को महती कवि-प्रतिमा का प्रमाण माल होता है। हितोपदेश का प्रचार केबल बकाल में ही सही, सारे भारतवर्ष में है। यही कारण है कि इसका अनुवाद बैंगला, हिन्दी और कई अन्य भाधुनिक भारतीय भाषाओं में हो गया है। इसके पद्यों की सरसता का दिग्दर्शन करने के लिए देखिए
माता शत्रः पिता वेरी येन बालोन पाठितः । १ शोभते सभामध्ये हंसमध्ये चको यथा ॥ (भूमिका २५) यथा र केन चकण न रथस्य मतिर्भवेत् । एवं पुरुषकारेण विना देवं न सिध्यति ॥ ( भूमिका २०) गध क्षा भी उदाहरण लीजिए----
सद् भवता विनोदाम कार्मादीनां विचित्रां कथां कथयामि।। राजपुत्रैरुक्तम् --कथ्यताम् । विष्णुशर्मोवाच---श्रयका सम्प्रति मित्रज्ञाभाः; यस्वायमाछ, श्लोकः।
(१०२) बृहत्कथा संस्करण अर्थात्
· उत्तरपश्चिमीय संस्करण । बृहत्कथामञ्जरी में और कथासरित्सागर में पाए हुए पञ्चतन्त्र के संस्करण सम्भवत: असली बृहत्कथा में नहीं होंगे, बक्षिक वे कश्मीरियों द्वारा कभी बाद में बढ़ा दिए गए होंगे। पञ्चतन्त्र के इस संस्करण में अन्य संस्करणों से इतना भेद है कि इसमें न तो स्पोद्धात है और म प्रथम तन्त्र की तीसरी कथा । ऐसा प्रतीत होता है कि इस संस्करण में प्रत्येक दो तन्त्रों के बीच में वाह्य तत्वों का समावेश करके उनका पार्थक्य प्रमद किया गया है। इस सस्करण के पाद का डीक ठीक दिश्चय करना बड़ा कठिन है । क्षेमेन्द्र अत्यन्त संप कर नावा है, और सोमदेव तो असली कहानियाँ तक छोड़ जाता है।