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सस्कृत साहित्य का इतिहास
की (२,१) कहानी शुक-साहलि में और बीरबल की बेताल पचत्रिशतिका में आई है। नीति-शास्त्र के ग्रन्थों में से उसका मुख्य उपजीय झामन्ड कोय नीतिसार था।
काल-(१) हितोपदेश का नेपाली संस्करण १३७३ ई. का है। अतः यह इससे पूर्व ही बना होगा।
(२) इसने माध और कामन्द की से बहुत कुछ जिया है; अत: इसे इनके बाद का ही होना चाहिए।
(३) इसने 'महारकवार' शब्द का प्रयोग किया है। अतः यह ११९ ई. के बाद का प्रतीत होता है।
(१) यह शुक्ल-सप्रति और बेताज पन्चविंशतिका का ऋणी है! किंतु इसमे काम का निश्चय करने में विशेष सहायता नहीं मिलती।
रूप-रेखा-हितोपदेश चार भागों में विभक्त है, जिनके नाम हैं-मित्रलाभ, सुहृभेद, विप्रह और सन्धि । इसमें असली पञ्चतन्त्र के पहले और दूसरे तन्त्र का कस बदल दिया गया है, और तीसरे तथा पाँचवें सन्त्र को सन्धि और विग्रह नाम के दो भागों में कुछ नया रूप दे दिया गया है, चौथा वन बिल्कुल छोड दिया गया है। सन्धि अर्थात् चतुर्थ अध्याय में एक नई कहानी दी गई है और इसी अध्याय में असली पञ्चतन्त्र के पहले और तीसरे सन्त्र में से कई कहानियाँ सम्मिलित कर दी गई हैं। इस प्रकार बने हुए हितोपदेश में असती पञ्चतन्त्र के पद्य-भाग का जगभग एक तिहाई और गध-भाग का बगभग दो बड़ा पाँच भग भा गया है।
शैली, लेखक का दृश्य है-अच्चों को संस्कृत भाषा और नीति सिखाना । इस उधेश्य के अनुसार इसकी भाषा सरब, सुगम और रोचक है। कुछ उन त पद्यों को छोड़ कर शेषांश में न तो दीर्घ समास हैं और न किसी वाक्य । भूल पातन्त्र का पके- पदे अनुसरण करने का प्रयत्न किसा समा है, इसी लिए विन्त क्रियापदों