Book Title: Sanskrit Sahitya ka Itihas
Author(s): Hansraj Agrawal, Lakshman Swarup
Publisher: Rajhans Prakashan

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Page 279
________________ २५६ संस्कृत साहित्य का इतिहास और उसमें लियाम कथाएं है; शेष चारों न्यूनाधिक संक्षेपास्मक है और उनमें असली अन्य के महत्वशून्य भाग का बहुल-सा भाग सन्निविष्ट नहीं किया गया है । जैसे नेपाली में वैसे ही इसी दक्षिणीय में भी कालिदास का एक पद्य पाया जाता है और निस्संदेह यह कालिदास से बाद का है। इसमें भी अनेक प्रक्षिप्स कथाएँ हैं। उदाहरण के लिए गोपिका वाली कथा का नाम लिया जा सकता। (१००) नेपाली संस्करण । नेपाली संस्करण की कई इस्तातित प्रतियां मिलती हैं। एक प्रति में केवल पय-भाग', ही है परन्तु अन्य प्रतियों में पद्य के साथ साथ संस्कृत या नेवारी भाषा में गद्य मो है ! नेपालो संस्करण में दूसरे और वीसरे तन्त्र का क्रम-परिवर्तन हो गया है। ऐसा प्रतीत होता है के लेखक ने असली पञ्चतन्त्र का, जो हितोपदेश का आधार है, उपयोग अवश्य किया था। इस संस्करण का कोई निश्चित निर्माणकाल नहीं बतलाया जा सकता। इसमें कालिदास का एक पद्य उद्धता है; अतः इतना ही निःश कहा जा सकता है कि यह कालिदास के बाद तैयार हुभा होगा। (१०१) हितोपदेश । हितोपदेश पन्चतन्त्र का वह विकृत रूप है, जिसका सम्बन्ध बङ्गाल से है। सच तो यह है कि इसने बङ्गाल में अन्य सब संस्करणों का प्रचार सन्मानित कर दिया है। इसके लेखक का नाम नारायण १ इसमें एक गब-खंट भी है। वह अचानक अनवधानता से लिखा गया प्रतीत होता है। २ देखिए, यावत् स्वोचलोऽयं दवदहनसमों यस्य स्फुलिङ्गः । तावनरायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोऽयंकथानाम् ।। (५,१३८)

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