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रूपक का धर्मसापेक्ष उद्भव
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इन्द्रध्वज पर्व पर खेले गए त्रिपुर- दाह और समुद्र मन्थन थे । इस बला को मत्यलोक में पहुंचाने का काम भरत के सुपुर्द किया गया । यह सारे का सारा उपाख्यान महत्त्व से शून्य नही है; क्योंकि इससे इन arat पर प्रकाश पड़ता है |
(१) नाव्य वेद की रचना में चारों वेदों का सहयोग है ।
(२) प्राचीनतम रूपक धार्मिक थे और वे धार्मिक पर्वो पर खेले गए थे।
(३) इनमें नर और नारी दोनों ने ही भाग लिया ।
(४) वैदिक काल में वास्तविक रूपक विद्यमान नहीं था । यही कारण था कि देवताओं को ब्रह्मा से उनके लिए एक नये प्रकार के साहित्य को (अर्थात् रूपक को ) पैदा करने की प्रार्थना करनी पड़ी। (ख) रूपक का धर्मसापेक्ष उद्भव |
(१) प्रो० रिजवे का विचार है कि भारत में वस्तुतः सारे जगत् में ही रूपक का जन्म मृतात्माओं के प्रति प्रकट की हुई लोगों की श्रद्धा से हुआ है; यही श्रद्धा, फिर सारे धर्म का श्रादि-मूल है- इस श्रद्धा की अर्थापन चीजों में से जीव बलि के सिद्धान्त का एक पुनरुच्छु वसन भी है । इस विश्वार के अनुसार नाटकों का अभिनय मृतात्मा की प्रीति के लिए होता था । परन्तु इसका साधक प्रमाण नहीं rिaat | पृथिवी की अन्य जातियों के बारे में यह विचार साधारणतया कुछ मूल्य रेल सकता हो, परन्त भारतीयों के बारे में यह ठीक नहीं माना जा सकता | (२) पर्व बाद इस वाद का बीज इन्द्र पत्र पर नाटकों के खेले जाने के उल्लेख में सन्निहित है। इस बाद में माना जाता है कि एक तो इन्द्रध्वज पर्व यूरोप के मे - पोल (May- Pole) स्वौद्दार के सा है। दूसरे, रूपक का उद्भव कदाचित् वसन्त में आने वाले स्योहारों से हुआ होगा; क्योंकि भीषण शरद के बाद वसन्त में जगत् की सभी सभ्य जातियाँ कोई न कोई त्यौहार मनाती हैं। यह बाद वस्तुतः बुद्धि
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