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संस्कृत साहित्य का इतिहास तीन बड़े-बड़े तन्त्रों के परिशिष्ट से दिखाई देने लगे हैं।
(६५) पञ्चतन्त्र की शैली । (१) ऊपर जो कुछ कहा जा चुका है, उससे यह मालूम होगा कि पहासन्न निश्चय ही प्रोपदेशिक जन्तु-कथा की पुस्तक है, जिसका प्रतिज्ञान प्रयोजन मनोहर और आकर्षक रीति से राजनीति और व्यवहारिक ज्ञान की शिक्षा देना है। इसकी कहानियों में पाकिस्य ओर हास्य रस दोनों हैं। तथा इनमें से अधिक में पात्र पशु है। कहानी
और राजनीतिक उद्देश्य को ऐसे कौशलले एक जगह मिलाया गया है कि प्रत्येक कहानी स्वयं कहानी के रूप में भी रमणीय है और किसीन-किसी धर्मनीतिक या राजनीतिक यातका सुन्दर दृष्टान्त भी है। उदाहरण के लिए प्रथम तन्त्र की प्रथम कथा ही बीजिए । इसमें एक बन्दर की मूर्खता का वर्णन है, जिसने आधे चिरे हुए दो तस्तों के उपर बैठकर उनमें फँसाए हुए खटे को बाहर खींचा, तो उसकी पूर्वी तख्तों के बीच आ गई। इससे यही शिक्षा दी गई है कि किसी को दूसरे के काम में दख्खन नहीं देना चाहिए । प्रथम ही तन्त्र की इक्कीसवीं कहानी
१ अघोऽक्षित तालिका से प्रत्येकतंत्र की काया का कुछ अनुमान हो सकता है
नाम पृष्ठ संख्या श्लोक संख्या कथा संख्या
प्रस्तावना १मतंत्र मित्रभेद २य तंत्र मित्रसंप्राप्ति श्य तंत्र काकोलूकीय ४६ २५४ ४र्थ तंत्र लब्धप्रणाश २६
८० ५मतंत्र अपरीचितकारिता ३७ ये अंक १६०२ में निर्णय-सागर प्रेस में मुद्रित संस्करण के अनुसार है।
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