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संस्कृत साहित्य का इतिहास
न गोप्रदानं न सहीप्रदानं च चानरानं हि तथा प्रधानम् । यथा वदन्ती बुधाः प्रदानं सर्वप्रदाने व भयमानम् ॥ (१,३१३) इन पथ की इम्समता, मधुरता और श्री के कारण ही पञ्चतन्त्र स्वरून कथा-पुस्तकों की श्रेणी से बहुत ऊपर उठा हुआ है । यह कहना कठिन है कि इन सब पद्यो का रवता भो अन्धकार ही है । कदाचित् उसने इनमें से बहुत से पद्य पुरा धार्मिक ग्रन्थों में से या अन्य प्रामाणिक पुस्तकों में लिए होने परिचायक हुन पत्रांका उचित निर्वाचन है
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मत का
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का शीर्षक
(४) पत्र की एक और विशेषता यह है कि प्रत्येक एक श्लोक में दिया गया है। इसी रखो मे कथा से निकलने वाली शिक्षा भी है दीगर है और इसमें मुख्य-मुख्य कथा-पात्रों के नाम भी आ गए हैं। प्रथम सत्र की श्रावी कथt or atfset mळा पद्य देखिए-
बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निबेोस्तु बुतो बलम् । बने सिंहो मोन्मत्तः शशकेन निपाति ॥ पात्रों के नामों से युक्त पत्रों का एक उदाहरण नीजिए
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१ विद्वानों के विचार से विपद्यमान की रक्षा करना ही सब से बड़ा धर्म है । इस धर्म की बराबरी न गौ का दान कर सकता है, न पृथ्वी का और न अन्न का । २ मालूम होता है कि लेखक को तीसरे तन्त्र की रूपरेखा के लिए और व्याघ का जाल लेकर उड़ जाने वाले कबूतरो को कथा के लिए संकेत महाभारस से ( देखिए, १०, १ और ५, ६४ ) मिला होगा | महाभारत में पराजित कोरवो को समझाया गया है कि जैसे कौवा ने उल्लू पर रात में आक्रमण करके विजय प्राप्त की थी, वैसे ही तुम भी रात में पाण्डवों के डेरों पर छापा मार कर विजय प्राप्त कर लो | इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया गया मालूम होता है कि सूरज की रोशनी में न देख सकने के कारण उल्लू बेवश होते हैं ।
३ जिस में बुद्धि है, उसमें बल भी समझो। मूर्ख के अन्दर बल कहाँ से