________________
संस्कृत साहित्य का इतिहास स्वतन्ज है। प्रथम तन्त्र में उपोद्धात और सुहट्-भेद वर्णित है। चीनी
जाल के ढंज पर एक में एक बुस कर कतिपय कहानियों की सहायता से दिया गया है कि कटंक और दमा इन दो चाया गीदड़ों ने স্বাঞ্ছা স্বল্প ক্ষ ও মই যি স্ব স্ব স্ব লীলঙল दो बच्चे और सुख भित्रों में दूर डलवा दो। पिजक को संजारक को मृत्यु से शोज मरतोटलमात हम उसे सान्त्वना दे दी और शाने. शने आपसका प्रधानामात्य अन बैठा।
दूसरे वन्त्र का नाम है मित्र-लप्राप्ति । इसकी कहानी की स्थूल -ই। সু চি রুহল সিম, নূহহ ছিহহ, জ্ঞাষ মুহুল, জুড়ী জাঙ্ক স্ত্রী ক্ষুনৰুৱনিকা সংকগুচ্ছ যুক্ষ দক अापल मित्र बन गए और फिर पारस्परिक सहयोग के बल से उन्होंने ঘন তিলায় বদলিখা ই ই না । ক্ষাধিক অন্তু অঙ্গ অম্ব স্ব অলি বীজ , গাছ রূয়া সুনা হিমাল
यानि कानि च मित्राणि कर्तव्यानि शतान्यपि--- मनुष्य की यथा सम्भव अधिक से अधिक मित्र बनाने वाहिर।
तीसरे तन्त्र में कौए और उल्लू के बैर के दृष्टान्त ले सन्धि-विग्रह का पाठ पढ़ाया गया है। कौनों का नेता तल्लू को पक्षिराज बनाने पर एतराज करता है। वह उल्लू को घृणास्पद कहता है। और किमी नीच प्राणी को राजा बना लेने पर पाने वाली विपत्तियों को दिल्ली और हरगंश की कहानी द्वारा विस्पष्ट करता है। नए उल्लू काओं से दुश्मनो निकालने का निश्चय करता है। कौनो का चतुर मन्नी उल्लुओं में जाकर कहता है कि --- मेरे छठी काकराज ने मुझे निकाल दिया है, मुझे शरण दीजिए । उल्लू उस्ले शीघ अपनी शरण में रख लेते हैं। यहां पर ए७, कहानी, द्वारा शत्रु-वर्ग में भेद डालने के लाभ बतलाए गए हैं। अन्त में एक सुअवसर प्राने पर बल्लुओं के दुर्भ में भाग जागा दी जाती है।