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पञ्चतन्त्र की वयवस्तु
२४५ का नाम श्राया है। यह पर्वत दक्षिण भारत में ही है। प्रन्थकार को दाहिखास्य मान लेने पर इसका उल्लेख यथार्थ हो जाता है ।
(६) काल - दीवार एक रोमन सिक्का है जिस का प्रचार कभी यूरोप से भारत तक हो गया था । एक पद्य में इसका नाम आया है। समझा जाता है कि यह पद्य असली पञ्चतन्त्र का है । श्रतः सखी अन्थ ईसा के बाद का हुए बिना नहीं रह सकता । असली ग्रन्थ ५५० ई० से बहुत पहले लिखा जा चुका होगा; क्योंकि, ५५० ई० में बजई द्वारा (Barzoe) इसका अनुवाद पह्नवी में हो चुका था। वह संस्करण पह्नवी, में अब अप्राप्य है, किन्तु इसका अनुवाद सन् ५७० ई० में बूर ने (Bud) पुरानी सीरियन भाषा में कर दिया था । अव असली पञ्चतन्त्र का रचना काल ईसा की दूसरी या तीसरी शताब्दी में माना जा लकता है ।
(७) भाषा -- पुराविदों को इसमें प्राय: कोई विप्रतिपति नहीं कि असली ग्रन्थ संस्कृत में ही लिखा गया था । यदि ऐसा न मानें तो नाना संस्करणों में जो एक-सी भाषा पाई जाती है, उसका क्या कारण बताया जा सकता है। इसके अतिरिक्त हम यह भी निश्चित रूप से जानते हैं कि ग्रन्थ क्षत्रिय कुमारों के लिए लिखा गया था और इसका लेखक ब्राह्मण था । यह समकना कठिन है कि ऐसा ग्रन्य कभी प्राकृत में क्यों बिखा जाता।
(६४) पञ्चतन्त्र की वयवस्तु ।
पञ्चतन्त्र में तन्त्र नामक पाँच अध्याय हैं। प्रत्येक की वयवस्तु
१ मालूम होता है डाक्टर हर्टल इस पद्य को कोई महत्व नाई देते हैं । इर्टल का विश्वास है कि असली पञ्चतन्त्र ईसा से कोई २०० बर्ष पूर्व लिखा गया था । सच तो यह है कि अनेक कहानियां ईसा से २०० वर्ष पूर्व जैसे प्राचीन काल में भी बहुत पुराने काल से प्रचलि चली श्रा रही थीं।